शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

'मूडीज' को लेकर अरुण जेटली किसे बुद्धू बना रहे हैं !

—अरुण माहेश्वरी


भारत के बारे में 'मूडीज' की क्रेडिट रेटिंग में मामूली बढ़ोतरी का क्या असली मतलब है ? किसी भी सार्वभौम देश के बारे में ऐसी संस्थाओं की क्रेडिट रेटिंग और किसी के लिये नहीं, मूलतः उन देशों के लिये काम की होती है, वह भी न के बराबर, जो अपने पास पड़े हुए निवेश योग्य अतिरिक्त धन के निवेश की तलाश में होते हैं — कर्ज के रूप में हो या किसी और रूप में ।

इस मामले में मूडीज की क्रेडिट रेटिंग भारत के बारे में कुछ भी क्यों न रही हो, भारत के आज तक के इतिहास में उसने अपनी किसी भी अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय देनदारी के भुगतान में कोई कमजोरी नहीं दिखाई है । यहां तक कि 1990-91 में चंद्रशेखर के प्रधानमंत्रित्व के काल में विदेशी मुद्रा का जो अभूतपूर्व संकट पैदा हुआ था, तब भी चंद्रशेखर ने बैंक आफ इंगलैंड में देश का सोना गिरवी रख कर विदेशी कर्जदारों को भुगतान रुकने नहीं दिया था । अर्थात कर्जों के लेन-देन के मामले में भारत अपने इतिहास में आज तक कभी डिफाल्टर नहीं हुआ है ।

यही वजह है कि भारत को दुनिया से कर्ज मिलने में आज तक कभी कोई बाधा नहीं रही है । और, सबसे बड़ी बात है कि भारत आज कर्जों की तलाश में दुनिया के बाजार में झोली फैलाये खड़ा देश नहीं है । अभी चंद रोज पहले ही जापान ने बुलेट ट्रेन के नाम पर भारत सरकार को इतनी कम ब्याज की दरों पर कर्ज दिया है, जिसे खुद प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह मुफ्त में मिले कर्ज के समान है !

अरुण जेटली कह रहे है कि मूडीज के इस कदम से भारत के बैंकों में अब विदेशी निवेश बढ़ेगा । जेटली से पूछना चाहिए कि क्या भारत का एक भी बैंक ऐसा है जो विदेशों से रुपये लेने की कोई कोशिश कर रहा है या कोशिश करने पर भारत सरकार की गारंटी के बावजूल आज तक विफल हुआ है ? यहां बैंकों की स्थिति यह है कि उनके पास जितना रुपया जमा है उसे वे सही जगह पर निवेश नहीं कर पा रहे हैं, फिजूल में उस पर ब्याज दे रहे हैं । इसी एक वजह से नोटबंदी ने बैंकों की हालत और खस्ता कर दी है । और जेटली कहते हैं मूडीज की रेटिंग में सुधार से बैंकों में रुपया आयेगा !

वे किसे बुद्धु बना रहे हैं ? या, खुद ही इस प्रकार की रेटिंग की सच्चाई को नहीं समझते हैं !

दरअसल, विदेशी कॉरपोरेट जगत में इस प्रकार की रेटिंग का महज एक सांकेतिक और सजावटी महत्व भर है जिसे वे अपनी रिपोर्टों में अपने निवेश को उचित बताने के लिये दिये जाने वाले तर्कों में शामिल कर लेते हैं । अन्यथा जो भी कॉरपोरेट जगत की सच्चाई को जानते हैं, उनके फैसले इन सजावटी बातों के आधार पर नहीं, मुनाफे की दर के अपने आकलनों के आधार पर ही लिये जाते हैं । और जहां पर सरकार की गारंटी हो, वहां वे अपने कर्ज के डूबने की चिंता नहीं करते हैं । इसे ख्याल रखना चाहिए कि मूडीज की यह रेटिंग सोवरन रेटिंग है, अर्थात भारतीय राज्य की रेटिंग है । इससे भारत की निजी कंपनियों का कोई संपर्क नहीं है ।

इसीलिये किसी भारत की तरह के एक सार्वभौम राष्ट्र की 'मूडीज' की तरह की एजेंशियों की रेटिंग का सच पूछा जाए तो दो कौड़ी का भी मोल नहीं है । हांलाकि मोदी-जेटली जैसे लोगों के लिये इसका अपने थोथे राजनीतिक प्रचार के लिये जरूर लाभ हो सकता है और 'मूडीज' की तरह की एजेंशिया इस प्रकार के इतर उद्देश्यों के लिये अपनी रेटिंग की एक प्रकार की नीलामी करने से कोई परहेज नहीं करती है ! आखिरकार वे भी व्यवसाय करने के लिये, मुनाफा कमाने के लिये उतरी हुई एजेंशियां है । दुनिया में किसी भी वित्तीय निवेश या कर्जों के लेन-देन के मामले में वे कोई गारंटर की भूमिका में तो होते नहीं हैं कि कर्ज लेने वाले के डिफाल्ट करने पर उन पर किसी प्रकार की कोई देनदारी का भार पड़ता हो ।

जेटली, उनके खरीदे हुए अखबार और चैनल मूडीज की रेटिंग को लेकर जितना भी नाचे, यह मोदी-शाह सरकार की शुद्ध राजनीतिक शोशेबाजी है, इससे जनता के जीवन के किसी भी पहलू का या हमारी अर्थ-व्यवस्था में सुधार का भी रत्ती भर संबंध नहीं है ।

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