रविवार, 26 अक्तूबर 2014

क्या यह किसी बड़े घोटाले की तैयारी है !


आज जगदीश्वर चतुर्वेदी के पोस्ट से पता चला कि भारत में मोबाइल कॉल और इंटरनेट की कीमत बढ़ाई जा रही है। यह काम तभी हो सकता है जब टेलिकॉम क्षेत्र की सभी कंपनियां आपस में मिल कर सिंडिकेट बना कर काम करें। इस प्रकार का सिंडिकलिज्म इजारेदारी को रोकने के एमआरटीपी एक्ट के विरुद्ध है।
मुसीबत यह है कि भारत में जो ‘टेलिकॉम रेगुलेटरी आथोरिटी (ट्राई) एक समय में टेलिकॉम कंपनियों की मनमानी से उपभोक्ताओं को बचाने के उद्देश्य से निर्मित हुई थी, आज वही टेलिकॉम कंपनियों के सिंडिकलिज्म के मंच में शायद तब्दील हो गयी है। अन्यथा, जिस युग में सारी दुनिया में फोन और इंटरनेट को जन-कल्याण कार्यक्रमों के तहत लगभग मुफ्त कर देने की बातें चल रही है, उसी समय यहां की टेलिकॉम कंपनियां बिना किसी प्रतिवाद के आसानी से इन सेवाओं को महंगा बना रही है।
केन्द्रीय सरकार क्या कर रही है? क्या वह टेलिकॉम कंपनियों की इस मिलीभगत के साथ है? अगर नहीं, तो इस प्रकार की इजारेदाराना हरकतों को रोकने के लिये वह क्या कर रही है?
कहीं यह एक और बड़े टेलिकॉम घोटाले का सूत्रपात तो नहीं है?

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