गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

सीपीआई(एम) की केन्द्रीय कमेटी में संगठन

अखबार बताते हैं कि सीपीआई(एम) की केन्द्रीय कमेटी में संगठन पर चर्चा हो रही है। यह सबसे महत्वपूर्ण है। अन्दर से कमजोर बाहर के दबावों के सामने असमर्थ होता हैं।

संगठन की कमजोरी के मूल में भी सांगठनिक सिद्धांतों की बड़ी भूमिका है। तथाकथित क्रांतिकारी पार्टी के बंद ढांचे ने इसे तबाह किया है।

सार्त्र का नाटक है - ‘No Exit’।

नर्क पहुंची तीन नीच आत्माओं को यातना देने के बजाय एक कमरे में हमेशा-हमेशा के लिये बंद कर दिया जाता है। आपस में कोई अपना पाप कबूल नहीं करना चाहता। लेकिन एक कहता है - हमें अपना नैतिक अपराध कबूल करना चाहिए। और इसी क्रम में एक बिना किसी यंत्रणादायी के ही यंत्रणा पाने के सच को देख लेता है। कहता है - ‘‘रुको! देखो यह कितनी सीधी बात है, बच्चों की तरह सीधी। यहां कोई शारीरिक यंत्रणादाता नहीं है। यह तो तुमलोग मानोगे? फिर भी हम नर्क में हैं। और, यहां कोई दूसरा नहीं आने वाला। हम तीनों हमेशा-हमेशा के लिये, इस कमरे में रहेंगे। ...संक्षेप में, यंत्रणा अधिकारी यहां नहीं है...जाहिर है उनके पास लोगों की कमी है - हममें से प्रत्येक बाकी दोनों के लिये यंत्रणादायी का काम करेगा।’’

बंद कमरा और शत्रु की तलाश की प्रवृत्ति - सोच लीजिये यह सब क्या किसी नर्क से कम है!

संगठन जितना बंद, उतना ही घना नर्क।

सीपीआई(एम) ने जन-क्रांतिकारी पार्टी के गठन के उद्देश्य को अपना कर इस प्रकार के बंदपन से मुक्ति का रास्ता तलाशा था। उसे पुनर्जीवित करने की जरूरत है।

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