बुधवार, 2 सितंबर 2015

यह कैसा राजनय !

-अरुण माहेश्वरी

हमारे मित्र चैतन्य नागर ने भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे एक-दूसरे के खिलाफ गर्जन-तर्जन को देखते हुए अपनी एक टिप्पणी में कहा है कि ‘‘ पकिस्तान को जिंदा रहने के लिए भारत चाहिए; भारत को ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए चाहिए पाक. दोनों एक दूसरे के अस्तित्व के लिए बड़े जरुरी हैं.’’ इस मामले में हम कहना चाहेंगे कि यह जरूरत भारत और पाकिस्तान के अस्तित्व के लिये नहीं, बल्कि भारत की सांप्रदायिक ताकतों और पाकिस्तान के फौजी संस्थान के अस्तित्व के लिये है।
अमेरिकी शोधकर्ता जे.ए.कुर्रान, जूनियर ने पिछली सदी के पचास के दशक में ही आरएसएस पर अपने शोध में लिखा था कि भारत में आरएसएस की स्थिति भारत-पाकिस्तान संबंधों पर निर्भर है। जब ये संबंध बिगड़ेंगे, आरएसएस को अतिरिक्त बल मिलेगा, और इसमें सुधार से आरएसएस के लिए प्रतिकूलता बढ़ेगी। पाकिस्तान के फौजी सत्ता संस्थान के साथ भी यही स्थिति है।
लेकिन भारत में गांधी जी की राय थी कि पाकिस्तान में कुछ भी क्यों न हो, भारत हमेशा धर्म-निरपेक्ष रहेगा। इसी समझ ने भारतीय समाज को पिछले सत्तर साल में अंदर से मजबूत किया है। इसके विपरीत यदि पाकिस्तान के फौजियों की नकल की जाती है तो इसका परिणाम भी पाकिस्तान की सामाजिक समस्याओं जैसा ही होगा। आपस में लड़ता हुआ, अंदर से कमजोर। भारत के जिस शासन अपने अस्तित्व के लिये पाकिस्तान के शासन की नकल की जरूरत होगी, वह अंतत: इस समाज को भी उसी तर्ज पर तबाह करने का अपराधी साबित होगा।
पाकिस्तान में भी अच्छी-खासी तादाद ऐसे लोगों की है जो भारत के साथ अच्छे संबंधों पर बल देते हैं। वहां की आम जनता में यही भावना प्रबल है। इसीलिये चुनावों में जीतने के लिये वहां कट्टर भारत-विरोध की राजनीति उतनी कारगर नहीं होती है। लेकिन वहां फौज एक अलग और समानांतर सत्ता-केंद्र है। उसके दबाव से चुनी हुई सरकारें मुक्त नहीं हो पाती है। खास तौर पर तब तो और भी, जब भारत का शासन सीधे तौर पर उनके लिये खतरा पैदा करता दिखाई देने लगता है।
ऐसे में, इस भारतीय उपमहाद्वीप में शांति और स्थिरता के लिये भारत सरकार की जिम्मेदारी प्रमुख है। जो सरकार यह नहीं समझेगी और ईट का जवाब पत्थर से देने की भाषा में बात करेगी, वह इस पूरे क्षेत्र की तबाही का सबब बनेगी। भारत की भी।

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