बुधवार, 2 सितंबर 2015

सुनो ! मैं कलबुर्गी बोल रहा हूँ

कट्टरपंथियों के हाथों मारे गये कन्नड़ के प्रगतिशील विचारक और शोधकर्ता डा. एम एम कलबुर्गी को सरला माहेश्वरी की काव्यांजलि :


सुनो ! कान खोलकर सुनो !
सुनो ! मैं कलबुर्गी बोल रहा हूँ !
अरे...रे...डरो मत !
मैं कोई भूत नहीं हूँ !
मैं जिंदा हूँ !
तुम्हारी गोलियाँ नहीं मार सकती मुझे !
अभी-अभी जारी किये हैं मैंने
अपने शोध के नतीजे !
विश्व मानव समुदाय ने लगा दी है उसपर
अपनी स्वीकृति की मुहर !
अरे...र...
तुम अभी भी डर रहे हो !
गोलियाँ चलाते नहीं काँपते तुम्हारे हाथ !
उस समय तुम्हें डर भी नहीं लगता !
पर देखो,अब मैं तुम्हारे काम ...
हाँ, हाँ, तुम्हारे काम की चीज़ बता रहा हूँ
सुनो ! मेरे शोध के नतीजे बता रहे हैं...
तुम्हारी जिंदगी के बहुत कम दिन बचे हैं ...
असल में तुम्हारे डीएनए में ही गड़बड़ है ...
उसमें जिंदगी की आवश्यक कोशिका ही नहीं है
अरे, वही विवेक की कोशिका ...
वही कोशिका तो जीवन के लिये ज़रूरी प्रोटीन बनाती है
इसीसे तो जीवन का रस बनता है
और वही कोशिका तुम्हारे अंदर नहीं है...
"सर जी मुझे बचा लीजिये !
आप तो बहुत ज्ञानी हैं, कुछ भी कीजिये !"
"मैं, मैं मरना नहीं चाहता ...
सर जी कोई उपाय कीजिये"
हाँ, हाँ एक उपाय है !
तुम्हारे डीएनए की उस लुप्त कोशिका को जिंदा करना होगा !
"सर जी कुछ भी करिये,पर मुझे बचाइये"
ठीक है ! पर फिर तुम वो नहीं रहोगे जो अभी हो ...
तुम्हारा कायान्तर करना होगा
जैसे प्लास्टिक सर्जरी के बाद होता है ...
तुम्हें एक नया शरीर मिलेगा
इसके लिये इस शरीर को छोड़ना होगा ...
तो, हो बदलने के लिये तैयार...
चलो ! शुरु करते हैं आपरेशन...।

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