रविवार, 19 मार्च 2017

हठयोग से राजयोग तक की योगी आदित्यनाथ की यात्रा

- अरुण माहेश्वरी


अब शक नहीं कि योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री है। कल जब इनके नाम की घोषणा की गई थी, लगा था यह भाजपा में एक बड़ा राजद्रोह है। हिंदू युवावाहिनी के बल पर एक हठयोगी ने आरएसएस-भाजपा के गढ़ पर विजय हासिल कर ली है।

एक समय आरएसएस ने हिंदू महासभा पर अपने कार्यकर्ताओं के बल पर कब्जा जमाने की कोशिश की थी। लेकिन हिंदू महसभा के वीर सावरकर उनके इरादों के सामने पहाड़ समान बाधा बन कर खड़े हो गये। लेकिन आज की भाजपा में कोई सावरकर नहीं है। और योगी आदित्यनाथ ने अपने हठयोग से ‘सिंह गर्जना’ कोरे श्वानोन्माद में बदल दिया।

घबड़ाये हुए भाजपा नेतृत्व को योगी को खुला छोड़ना गंवारा नहीं था। इसीलिये अपना मंत्रिमंडल चुनने की उन्हें स्वतंत्रता नहीं दी गई बल्कि शुरू में ही उन्हें दो-दो उप-मुख्यमंत्रियों और कुल 46 मंत्रियों की डोर से बांध कर मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई।

लेकिन योगी जिस गोरखनाथ की पीठ से आते हैं, हिंदी भाषा को उसकी ही एक देन है - गोरखधंधा। इस नाथ पंथ के आदि गुरू गोरखनाथ ने अपने गुरू मत्स्येन्द्रनाथ के बाद आदमी के अंतरजगत में प्रवेश के इतने दरवाजे तोड़ कर अपने हठयोग का प्रवर्त्तन किया था जिनकी साधना करने वाला व्यक्ति उन दरवाजों में ही भटकता हुआ हार-थक जाता है। इसी से गोरखधंधा शब्द की व्युत्पत्ति हुई। योगी आदित्यनाथ अपनी इस साधना में कितने पटु है, यह उन्होंने भाजपा नेतृत्व के अनिच्छुक हाथों से मुख्यमंत्री पद को झटक कर साबित कर दिया। जाहिर है, उनपर लगाई गई दूसरी बाधाएं भी आगे किसी काम की साबित नहीं होगी।

भारतीय दर्शन में योगदर्शन के सर्वमान्य ऋषि पातंजलि ने योगियों के बारे में कहा था कि उन्हें अपने चित्त को समस्त मनुष्यों के प्रति मैत्री भाव रखने का अभ्यास करना चाहिए। खुद नाथपंथ की ख्याति इसी बात में रही है कि वह ईश्वर को घट-घट वासी मानता है।

और, हमारे योगी आदित्यनाथ ! ये गोरख-धंधों में उलझे हुए योगी है। देखना है आगे इनका शासन क्या-क्या गुल खिलाता है।

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