-अरुण माहेश्वरी
कहते हैं कि कलाकार की ऐब ही उसकी पहचान होती है। सिर्फ कलाकार नहीं, कुछ ऐसा ही सभी के साथ होता है। एक अच्छा-भला, हर लिहाज से खुशहाल आदमी भी देखा जाता है कि अपनी किसी एक बुरी लत के पीछे अपनी सारी खुशियों को दाव पर लगा देता है। लगता है जैसे आदमी को अपनी प्राणी सत्ता का अहसास जैसे अपनी उस लत में ही होता है। उसे छोड़ दे तो लगेगा जैसे वह अंदर से पूरी तरह खोखला हो गया है।
ऐसे में योगी आदित्यनाथ के बारे में जितना सोचता हूं, उतना ही इस बात पर यकीन करना असंभव होता जाता है कि यह व्यक्ति कभी राज्य में शांति, सौहार्द्र और विकास का हेतु बन सकता है। सांप्रदायिक तनावों, दंगों और नाना प्रकार की अपराधपूर्ण हरकतों के बीच ही तो योगी आदित्यनाथ योगी आदित्यनाथ है। असंयमित भाषा और रौर्द्र व्यवहार के बिना उनके होने का अर्थ ही क्या है ! किसी भी कारणवश उनमें अगर यह सब नहीं है तो योगी जी के लिये यह दुनिया सून है। मुख्यमंत्री की गद्दी क्या, प्रधानमंत्री का पद भी उनकी अपनी इस प्राणी सत्ता के बोध के सामने फीके हैं।
कोई पूछ सकता है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी पर भी किसी हद तक यही मानदंड लागू नहीं होता है। निश्चित तौर पर होता हैं। लागू होता हैं, इसीलिये मोदी जी का कार्यकाल आजाद भारत के राजनीतिक इतिहास में एक सबसे अधिक विफल प्रधानमंत्री का शासनकाल साबित हो रहा है। सिवाय ध्रुवीकरण और लोगों को उत्तेजित करके बहकाने में उनके महारथ के अलावा इन तीन सालों के कार्यकाल में उनका एक भी ऐसा कदम नहीं दिखाई देता है जिसे एक सुचिंतित, विकासमूलक कदम कहा जा सके। अब तक जो भी किया गया है, सब में एक अजीब प्रकार की आदिम सनक की छाप दिखाई देती है। लफ्फाजी अधिक और काम नगण्य या विपथगामी।
योगी जी को यदि 2019 के आम चुनाव को मद्देनजर रखते हुए यूपी के माहौल को उत्तेजित रखने के उद्देश्य से लाया गया है, तो इससे दुर्भाग्यजनक हमारे देश, और खास तौर पर यूपी के लिये और कुछ नहीं हो सकता है। 2019 के बाद फिर 2022, और फिर...। यह तो पूरे राष्ट्र को अनंत काल तक एक अजीब से दबाव में रखने और इस प्रकार उसके विकास की संभावनाओं को पूरी तरह से कुंद कर देने का अंतहीन सिलसिला होगा। यह भारत को तालिबानियों और अन्य उग्रपंथियों द्वारा चालित देश की शक्ल देने जैसा होगा।
भारत सांप्रदायिक उग्रपंथियों के इस कुचक्र से जल्द से जल्द निकले, इसके लिये जरूरी है कि देश की सभी जनतांत्रिक और धर्म-निरपेक्ष ताकतें अभी से एकजुट होए। मोदी-योगी योग से राष्ट्र मात्र के अस्तित्व पर खतरा बिल्कुल वास्तविक लग रहा है।
कहते हैं कि कलाकार की ऐब ही उसकी पहचान होती है। सिर्फ कलाकार नहीं, कुछ ऐसा ही सभी के साथ होता है। एक अच्छा-भला, हर लिहाज से खुशहाल आदमी भी देखा जाता है कि अपनी किसी एक बुरी लत के पीछे अपनी सारी खुशियों को दाव पर लगा देता है। लगता है जैसे आदमी को अपनी प्राणी सत्ता का अहसास जैसे अपनी उस लत में ही होता है। उसे छोड़ दे तो लगेगा जैसे वह अंदर से पूरी तरह खोखला हो गया है।
ऐसे में योगी आदित्यनाथ के बारे में जितना सोचता हूं, उतना ही इस बात पर यकीन करना असंभव होता जाता है कि यह व्यक्ति कभी राज्य में शांति, सौहार्द्र और विकास का हेतु बन सकता है। सांप्रदायिक तनावों, दंगों और नाना प्रकार की अपराधपूर्ण हरकतों के बीच ही तो योगी आदित्यनाथ योगी आदित्यनाथ है। असंयमित भाषा और रौर्द्र व्यवहार के बिना उनके होने का अर्थ ही क्या है ! किसी भी कारणवश उनमें अगर यह सब नहीं है तो योगी जी के लिये यह दुनिया सून है। मुख्यमंत्री की गद्दी क्या, प्रधानमंत्री का पद भी उनकी अपनी इस प्राणी सत्ता के बोध के सामने फीके हैं।
कोई पूछ सकता है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी पर भी किसी हद तक यही मानदंड लागू नहीं होता है। निश्चित तौर पर होता हैं। लागू होता हैं, इसीलिये मोदी जी का कार्यकाल आजाद भारत के राजनीतिक इतिहास में एक सबसे अधिक विफल प्रधानमंत्री का शासनकाल साबित हो रहा है। सिवाय ध्रुवीकरण और लोगों को उत्तेजित करके बहकाने में उनके महारथ के अलावा इन तीन सालों के कार्यकाल में उनका एक भी ऐसा कदम नहीं दिखाई देता है जिसे एक सुचिंतित, विकासमूलक कदम कहा जा सके। अब तक जो भी किया गया है, सब में एक अजीब प्रकार की आदिम सनक की छाप दिखाई देती है। लफ्फाजी अधिक और काम नगण्य या विपथगामी।
योगी जी को यदि 2019 के आम चुनाव को मद्देनजर रखते हुए यूपी के माहौल को उत्तेजित रखने के उद्देश्य से लाया गया है, तो इससे दुर्भाग्यजनक हमारे देश, और खास तौर पर यूपी के लिये और कुछ नहीं हो सकता है। 2019 के बाद फिर 2022, और फिर...। यह तो पूरे राष्ट्र को अनंत काल तक एक अजीब से दबाव में रखने और इस प्रकार उसके विकास की संभावनाओं को पूरी तरह से कुंद कर देने का अंतहीन सिलसिला होगा। यह भारत को तालिबानियों और अन्य उग्रपंथियों द्वारा चालित देश की शक्ल देने जैसा होगा।
भारत सांप्रदायिक उग्रपंथियों के इस कुचक्र से जल्द से जल्द निकले, इसके लिये जरूरी है कि देश की सभी जनतांत्रिक और धर्म-निरपेक्ष ताकतें अभी से एकजुट होए। मोदी-योगी योग से राष्ट्र मात्र के अस्तित्व पर खतरा बिल्कुल वास्तविक लग रहा है।
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