रविवार, 12 जनवरी 2014

'आप' के इस महा-आलोड़न की शक्ति व्यर्थ न होने पाये



'आप' ने जाहिरा तौर पर देश के नौजवानों में जो नया जज़्बा पैदा किया है, वह जितना सुखदायी है, उतना गहरी चिंता भी पैदा करता है । 

इस नये उभार का अंत यदि किसी प्रहसन या धोखे में हुआ, राष्ट्रीय जीवन की दशा और दिशा को बदलने में यह विफल हुआ तो इससे पैदा होने वाले मोहभंग का क्या रूप होगा, वह कितना पीड़दायी और विस्फोटक होगा़, इसकी कल्पना से मन सहम जाता है 

यह सच है कि किसी के पास कोई 'जादू की छड़ी' नहीं है, लेकिन मौजूदा व्यवस्था की सीमाओं और बाधाओं को मानने की मजबूरी भी तो नहीं है । बदलाव के इस जज़्बे को गहरे क्रांतिकारी जज़्बे में बदल कर ही परिवर्तन के उन लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है, जिनकी प्रतिश्रुति ने समाज के सभी तबक़ों को इस हद तक आलोड़ित किया है । और, तब यह संकल्प किसी 'जादू की छड़ी' से कम नहीं होगा ।

इस पूरे उभार के लिये आगामी आम चुनाव तो संघर्ष का एक बेहद महत्वपूर्ण मुक़ाम है ही, ज़रूरत इससे भी बहुत आगे जाकर सोचने की है । यह लड़ाई सिर्फ़ चुनाव से चुनाव तक न चले, सिर्फ़ संसद और विधायिकाओं तक सीमित न रहे, बल्कि लगातार, संसद के दायरे से बाहर सड़कों पर, हर शहर, गाँव, जंगल-पहाड़ पर समान रूप से जारी रहे, तभी इसके अभिप्सित लक्ष्य हासिल होंगे और इस पूरे आलोड़न को इसकी सही और तार्किक परिणति तक ले जाया जा सकेगा ।

इस आलोड़न के अन्तर में आज़ाद भारत में एक और आज़ादी की लड़ाई की तमाम संभावनाओं के, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, जातिवाद, भाई-भतीजावाद, सार्वजनिक संपदाओं की खुली लूट से जर्जर हो चुके आज के भारत के पूर्ण कायांतर के बीज छिपे हुए हैं ।

हर शुभ बुद्धि संपन्न नागरिक इसमें अपना योगदान करेगा, यही कामना है ।

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