राहुल गांधी ने अपने बहुचर्चित साक्षात्कार में आम आदमी पार्टी की प्रशंसा में कहा कि यह एक खुला संगठन है, इसमें नये-नये लोग आ रहे हैं।
‘खुला संगठन’ और ‘बंद संगठन’।
सार्त्र का नाटक है - ‘No Exit’।
नर्क पहुंची तीन पतित आत्माओं को यातना देने के बजाय एक कमरे में हमेशा-हमेशा के लिये बंद कर दिया जाता है। आपस में कोई अपना पाप कबूल नहीं करना चाहता। लेकिन एक कहता है - हमें अपना नैतिक अपराध कबूल करना चाहिए। और इसी क्रम में एक बिना किसी यंत्रणादायी के ही यंत्रणा पाने के सच को देख लेता है। कहता है -
‘‘रुको! देखों यह कितनी सीधी बात है, बच्चों की तरह सीधी। यहां कोई शारीरिक यंत्रणादाता नहीं है। यह तो तुमलोग मानोंगे? फिर भी हम नर्क में हैं। और, यहां कोई दूसरा नहीं आने वाला। हम तीनों हमेशा-हमेशा के लिये, इस कमरे में रहेंगे। ...संक्षेप में, यंत्रणा अधिकारी यहां नहीं है...जाहिर है उनके पास लोगों की कमी है - हममें से प्रत्येक बाकी दोनों के लिये यंत्रणादायी का काम करेगा।’’
बंद कमरा और शत्रु की तलाश की प्रवृत्ति - सोच लीजिये यह सब क्या किसी नर्क से कम है!
संगठन जितना बंद, उतना ही घनघोर नर्क।
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