गुरुवार, 12 मार्च 2015

लेसली उडविन

सरला माहेश्वरी की कविता :

मैं भारत की बेटी निर्भया
तुम्हें सलाम करती हूँ
बेटियाँ चाहे इंडिया की हो या इंग्लैंड की
अमरीका की हो या अफ़्रीका की
या फिर पृथ्वी के और किसी भू-भाग की
सबकी पीड़ा की भाषा एक होती है
यह पीड़ा ही थी
जिसने मिटा दी थी सारी दूरियाँ
भूला दिये थे सारे भेद
भेद में क्या है अभेद
मन-मस्तिष्क में कैसे कैसे छेद
तुम्हारे कैमरे की आँखे
खोल रही थी सारे बंद दरवाज़े
बलात्कारियों के दिमाग़ के पुर्ज़े-पुर्जे
ओह! कितना मवाद भरा है यहाँ
कितनी बदबू, कितनी सड़ांध है यहाँ
कितना विभत्स दृश्य है यहाँ
हर औरत बस एक शिकार है यहाँ
कैसा नग्न सत्य है यह
ना क़ाबिले बर्दाश्त है यह
बंद करो ! बंद करो ! बंद करो !
चिल्ला रहे हैं वे
सच्चाई से भाग रहे हैं वे
खुद से ही डर रहे हैं वे
धर्म और परंपरा के ठेकेदार हैं वे।
आओ उडविन
मेरे हाथों में अपना कैमरा दो
देखो ! कैमरा अब भी वही देख रहा है
सत्य कहाँ बदलता है
है अगर यह कोई साज़िश
तो औरत के खिलाफ है यह साज़िश
आधी मानवता के खिलाफ है यह साज़िश
आओ! सब मिलकर करे बेपर्द इसे ।

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