मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

अंतरीक्ष में गुरुत्वाकर्षण तरंगें अब एक प्रत्यक्ष सचाई है


11 फरवरी 2016। अमेरिका की दो भीमकाय दुरबीनों ने आज गुरुत्वाकर्षण तरंगों को देख लिया और वैज्ञानिकों ने उस तूफान के तुमुल कोलाहल को सुन लिया जो सुदूर अंतरीक्ष के दो ब्लैक होल्स के टकराने और एक दूसरे में घुस जाने से पैदा हुआ और जिसने गुरुत्वाकर्षण तरंगों से बुने गये इस महाअंतरीक्ष के एक कोने के ताने-बाने को फाड़ डाला। सारी दुनिया के भौतिक-शास्त्री रोमांचित है। पिछली 14 सितंबर को ही अमेरिका की दो दुरबीनों को इन तरंगों का पता लग चुका था। आज वे प्रत्यक्ष हुई हैं ।
आज दुनिया को वे चित्र उपलब्ध है जो बताते हैं कि गुरुत्वाकर्षण तरंगों से कैसे काल की गति में फर्क आ जाता है और स्थान का रूप-रंग बदल जाता है। इस नई जानकारी ने न सिर्फ इस बारे में आइंस्टाइन की एक महत्वपूर्ण स्थापना को प्रयोगशाला में प्रमाणित कर दिया है, बल्कि भौतिकी के जगत में अनेक नये प्रयोगों और खोजों का रास्ता खोल दिया है।
आज याद आ रही है 1 जनवरी 2015 की अपनी ही एक पोस्ट की, जिसे हमने उदय प्रकाश को जन्मदिन की बधाई देते हुए लगायी थी। 2015 आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत का शताब्दी वर्ष था और उस समय तक गुरुत्वाकर्षण तरंगों की उनकी बातों को प्रयोगशाला में प्रमाणित करने की संभावना की चर्चा शुरू हो गई थी। अपनी उस पोस्ट में हमने लिखा था - ‘‘आज हमारे प्रिय कथाकार उदय प्रकाश का जन्म दिन है।
“हम सन् 2015 में प्रवेश कर रहे हैं - अर्थात आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता (Theory of general relativity) के सिद्धांत के शताब्दी वर्ष में। सन् 1915 में आइंस्टाइन ने अपने इस सिद्धांत से देश-काल (Space and Time) संबंधी सहस्त्र सालों से चली आरही अटकलबाजियों को पूरी तरह से उलट-पुलट दिया था। ‘हमारा ब्रह्मांड काल की उपज है’, की तरह की कई महत्वपूर्ण बातों के अलावा उन्होंने एक बड़ी बात यह भी कही कि भौतिक पदार्थ की गुरुत्वाकर्षण तरंगों (gravitational waves) से देश-काल का रूप निरंतर बदलता है। पदार्थ के दबाव से देश-काल का रूप बदल जाता है । देश-काल इसके सामने लचीली जेली की तरह होता है । गुरुत्वाकर्षण की ये अदृश्य तरंगे देश-काल के किसी भी स्थिर रूप में दरारें पैदा कर सकती हैं ।
“आइंस्टाइन के अन्य सभी प्रमाणित हो चुके सिद्धांतों के उपरांत आज सारी दुनिया के भौतिकशास्त्री इस गुरुत्वाकर्षण तरंगों के सिद्धांत को भी प्रयोगशाला में प्रमाणित करने में लगे हुए हैं।
“कल्पना कीजिये, इस सापेक्षता सिद्धांत के सामाजिक महत्व की। कार्ल मार्क्स ने ब्रह्मांड की तरह ही पूंजी के ब्रह्मांड को काल की उपज बताया था। और, इतिहास में वर्ग-संघर्ष की भूमिका गुरुत्वाकर्षण की इन्हीं अदृश्य तरंगों की तरह है जो इस ब्रह्मांड में दरार डालती है, इसे बदल देती है।
“यही वजह है कि जो लेखन हाशियों पर पड़ी पराजितों की लड़ाई की तरंगों को अपने दायरे में नहीं लाता, वह जीवन के यथार्थ की गति को पकड़ने में नैसर्गिक रूप से असमर्थ है। कहा जाए तो एक अर्थ में अभिशप्त है। हमारे साथी नीलकांत की शब्दावली में वह मृत-सौंदर्य का पुजारी है।“
तीन साल नहीं हुए । पदार्थ के जिस कण को पहले देखा नहीं गया था, ईश्वर कण (god’s particle) के नाम से मशहूर हिग्सबोसोन को खोज लिया गया और तब भी सारी दुनिया के वैज्ञानिक और विज्ञान-मनस्क लोग इसीप्रकार झूम उठे थे। भौतिकी के क्षेत्र की हर उपलब्धि मनुष्यता की एक ऐसी थाती है जिसकी चमक समय के साथ कभी म्लान नहीं होती। हर बीतते दशक के साथ बड़ी से बड़ी ऐतिहासिक घटनाओं का महत्व गिरता जाता है। मानव प्रगति की राह में हर राजनीतिक और वित्तीय संकट महज एक क्षणिक ठहराव से ज्यादा मायने नहीं रखते। यहां तक कि महायुद्धों की तरह के आतंक भी कालक्रम में किसी अयर्थाथ से प्रतीत होने लगते हैं। लेकिन भौतिकी के नियम सनातन और सार्विक होते हैं। उनकी खोज मानव मात्र की विजय होती है।
गुरुत्वाकार्षण तरंगों का यह नजारा देखना, महाअंतरीक्ष के अब तक के छिपे हुए एक और रहस्य को भेद पाने के सूत्रों का मनुष्य के हाथों में आना हम सबके लिये बेहद खुशी की एक घटना है। इस जानकारी से दुनिया के अन्य सभी उत्फुल्ल लोगों की भावनाओं के साथ ही हम भी अपने उल्लास की भावनाएं साझा करते हैं।
आज हमारी वसंत पंचमी के मौके पर हम दुनिया के वैज्ञानिकों की इस सौगात का भी जश्न मनाते हैं।
सभी साथियों को वसंत पंचमी की शुभकामनाएं।

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