आज की दुनिया के एक सर्वाधिक चर्चित विचारक, दार्शनिक, उपन्यासकार, भाषाशास्त्री, साहित्यकार और जीवन के सभी क्षेत्रों में चिरस्थायी से दिखाई देने वाले सभी मूल्यों पर प्रश्न उठाने वाले इटली के एक प्रमुख सार्वजनिक बुद्धिजीवी अंबर्तो इको हमारे बीच नहीं रहे। मृत्यु के समय उनकी उम्र चौरासी साल थी।
दुनिया के आधुनिक बौद्धिक जगत के बारे में अगर कोई कुछ भी खबर रखता है तो ऐसा माना जा सकता है कि वह इको के नाम से जरूर ही परिचित होगा। और, जो आज के जीवंत बौद्धिक विमर्शों में रुचि रखते हैं, वे तो इको के लेखन की कत्तई अवहेलना नहीं कर सकते हैं।
इको का नाम आज दुनिया के उन दो-चार गिने-चुने नामों में से एक है जिनके विचारों के आकर्षण ने घोषित तौर पर विचारधारा और इतिहास के अंत की बंद गली के आखिरी छोर तक पहुंचा दिये गये समय में भी विचार और विचारवानों की प्रतिष्ठा को बनाये रखने में एक अहम भूमिका अदा की हैं। इटली के इस अध्यापक-विचारक ने दुनिया भर में ठस और कल्पनाशून्य मान लिये जा रहे अध्यापकों की जमात को ताउम्र शोध और सभ्यता-विमर्श के नये से नये पहलू के साथ जुड़ कर एक सार्वजनिक बुद्धिजीवी की सार्थक भूमिका अदा करने का रास्ता दिखाया था। उसने विश्वविद्यालयों में ज्ञान-चर्चा की कर्मकांडी जड़ता को तोड़ा था।
इटली - यूरोपीय रिनैसांस और ज्ञानप्रसार आंदोलन का हृदय-स्थल, ईसाई धर्म और उससे जुड़े तमाम धर्मशास्त्रीय विमर्शों का एक केन्द्रीय स्थान, कैथोलिक चर्च के मुख्यालय वैटिकन का देश, मुसोलिनी के फासीवाद की प्रयोगशाला, बेनडेट्टो क्रोचे की तरह के सौन्दर्यशास्त्रीय चिंतक की कर्मभूमि और अंतोनियो ग्राम्शी जैसे महान मार्क्सवादी विचारक का देश। अंबर्तो इको को आज के युग के एक ऐसे दार्शनिक-विचारक की प्रतिष्ठा मिली थी जिसमें इटैलियन ज्ञान-मीमांसा की जैसे अब तक की तमाम धाराएं एक साथ प्रवाहित हो रही हो, और सब एकमेक होकर चिंतन के किसी नये उत्कर्ष का उदाहरण पेश कर रही हो।
यह महज एक संयोग ही है कि वे लगभग पंद्रह साल पहले एक बार भारत आए थे और दिल्ली में हमें उन्हें देखने का मौका मिला था। तभी से हमारे निजी पुस्तकालय में एक-एक कर उनकी कई पुस्तके शामिल होती चली गई और किसी भी गंभीर लेखन की तैयारी के वक्त उनकी किताबों से गुजरना हमारे नियमित अभ्यास का हिस्सा बन गया। कहते हैं इको के दो निजी पुस्तकालयों में लगभग पचास हजार के करीब किताबें हैं।
इको का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास रहा है - द नेम ऑफ द रोज। एक मठ में मिली चौदहवीं सदी की पाण्डुलिपि पर आधारित किताब की रोमांचक कहानी। सात दिनों में विभाजित किताब की कहानी, जिसका हर दिन पूजा-अर्चना की वेलाओं में बंटा हुआ है।
कल हम रवीश कुमार के कार्यक्रम में दिखाये गये टीवी के जगत के अंधेरे की चर्चा कर रहे थे। इस उपन्यास के ‘अंतिम पृष्ठ’ के पहले का अध्याय है - NIGHT (रात)। इस अध्याय के शीर्ष पर लिखा हुआ है - NIGHT In which the ecprosis takes place, and because of excess of virtue the forces of hell prevail। (कयामत की रात जिसमें पूण्यों के अतिरेक के कारण नर्क की ताकतें छा जाती है।) हम अभी ऐसी ही ‘पूण्यात्माओं’ के अधीन रह रहे हैं।
इस उपन्यास के प्राक्कथन का पहला वाक्य है -In the beginning was the Word and the Word was with God, and the Word was god. (शुरू में शब्द था, शब्द ईश्वर के पास था, ईश्वर शब्द था।) ‘शब्द ब्रह्म’ के इस एक कथन के साथ ही हम इस उपन्यास की धारा में उतर पड़े थे।
हेगेल ने कहा था - शब्द वस्तु की हत्या है। जो भगवान अपने दैविक जगत के सारे ताम-जाम को छोड़ कर मनुष्य रूपों में अवतरित होते हैं, जब उनकी मृत्यु होती हैं, अर्थात जब वे अपनी जगह छोड़ने लगते हैं, प्रेरणादायी नहीं रह जाते, तब उनकी मृत्यु हमें विचारों की श्रृंखला से काटने के बजाय शब्द की चरम शक्ति से जोड़ती है। बौद्धिकता हमेशा प्रभु-सत्ताओं की मौत का जश्न मनाती है।
बहरहाल, इको की मृत्यु नि:संदेह दुनिया के बौद्धिक जगत की एक बड़ी क्षति है। हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
यहां हम वीकीपीडिया के उस लिंक को दे रहे हैं जिसमें इको के जीवन और कृतित्व के बारे में विस्तृत तथ्य दिये हुए हैं।
Umberto Eco - Wikipedia, the free encyclopedia
Umberto Eco OMRI (Italian: [umˈbɛrto ˈɛːko]; born 5 January 1932, died 19 February 2016) was an Italian semiotician, essayist, philosopher, literary critic, and novelist. He is best known for his groundbreaking 1980 historical mystery novel Il nome della rosa (The Name of the Rose), an intellectual…
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