—अरुण माहेश्वरी
2 जी, 2 जी, 2 जी — पिछले सात साल से इस पद की
इतनी गूंज रही है कि शायद कम ही लोग जानते होंगे कि यह किसी घोटाले का नहीं, बल्कि
दूर संचार की तकनीक की सुविधाओं के एक मानक का नाम भी है । कहा जा सकता है भारत
में हाल के सालों में यह राजनीतिक भूचाल का एक दूसरा नाम बन गया था, शासकों के
भ्रष्टाचार का पर्याय ।
विनोद राय नामक एक सीएजी ने, जो हाल ही में बाकायदा लिखित रूप में मोदी जी का
स्तुतिगान करता हुआ पाया गया है, हवा में ही कुछ गणना की, जो हुआ और जो हो सकता था
की एक अटकलबाजी को आंकड़ों का रूप दिया और एक रिपोर्ट तैयार कर दी कि मनमोहन सरकार
के मंत्रियों ने परिस्थिति का आकलन करने में गलती की जिससे सरकार को जो 1 लाख 76
हजार करोड़ का लाभ हो सकता था, वह नहीं हुआ । और, अनुमानों पर आधारित इस रिपोर्ट
को संसदीय प्रक्रिया का बिना पालन किये चुपके से एक पर्दाफाश की शक्ल में सार्वजनिक
करा दिया । पूरा विपक्ष इसे लेकर मनमोहन सरकार पर टूट पड़ा ; तिरंगा लहराते हुए अन्ना हजारे अपने गांव से शहर में आ
गये ; बाबा रामदेव भी 'भ्रष्टाचार-विरोधी' मुहिम में उतर गये ; भाजपा ने संसद को
पूरी तरह से ठप कर दिया ; मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया जहां चोरी से जाहिर की
गई सीएजी की इसी रिपोर्ट को घोटाले के सबूत के तौर पर पेश किया गया और सुप्रीम
कोर्ट ने अपनी देख-रेख में सीबीआई से पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिये ; सीबीआई
ने कई गिरफ्तारियां की जिनमें सरकारी अधिकारियों और दूरसंचार कंपनियों के सीईओज के
अलावा तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा, डीएमके की सांसद कनिमोनी की गिरफ्तारियां
भी शामिल है ; 2014 के चुनाव प्रचार में मोदी ने मोदी-मोदी के साथ ही 2जी 2जी के
शोर से पूरे चुनाव को भर कर ऐतिहासिक जीत हासिल कर ली ; बाद में सीबीआई ने हजारों
पन्नों की अपनी रिपोर्ट तैयार करके अदालत में अभियोग पत्र दाखिल किया ; और अब अंत
में अदालत ने आज जो फैसला सुनाया उसमें न्यायाधीश ओ.पी.सैनी ने कहा कि “पिछले सात
साल से गर्मी की छुट्टियों सहित काम के सभी दिनों में मैं सुबह दस बजे से शाम पांच
बजे तक खुली अदालत में बिना नागा प्रतीक्षा करता रहा कि कोई अपने पास से कानूनी
तौर पर स्वीकृत सबूतों के साथ आयेगा, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ । हर कोई अफवाहों
और गपों के पीछे दौड़ रहा था ।”
अदालत ने 2जी घोटाले के
अस्तित्व मात्र से इंकार करते हुए सभी अभियुक्तों को मुक्त कर दिया । और, इस
प्रकार एक सीएजी की हवाई गणना से तैयार किये गये घोटाले को सचमुच अदालत ने हवा में
उड़ा दिया ! कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल जो कह रहे थे कि जिस बात को सरकार का
नुकसान बताया जा रहा है, वह तो एक कोरी कपोल कल्पना है, उसका यथार्थ में कोई
अस्तित्व नहीं है, अदालत ने भी उसी पर मोहर लगा दी ।
इस मामले में कुल जमा इतना
जरूर हुआ कि मोदी-भक्त सीएजी विनोद राय ने भारत की राजनीति में भाजपा और आम आदमी
पार्टी के लिये भी इतनी रशद जुटा दी कि मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन गये और
अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री । हांलाकि सबूतहीन सीबीआई अभी भी कह रही है
कि वह भाजपाइयों की गढ़ी हुई कहानियों के भरोसे ही ऊपर की अदालत में अपील करेगी और
अरुण जेटली भी अदालत की इस साफ राय को उलझा कर रखने की कोशिश में लगे हुए हैं,
लेकिन यह सब खिसियानी बिल्ली के तरह खंभा नोचने वाली हरकतों से ज्यादा शायद कोई
मायने नहीं रखता है !
भारत की हाल की राजनीति के क्षेत्र में तूफान ला देने वाले इस 2 जी मामले की
इस परिणति को देख कर हमें अनायास ही इटली के विचारक लेखक अंबर्तो इको के लंबे लेख — “मिथ्या की शक्ति” ( Power of Falsehood ) की याद आ जाती है । तीस पेज
के अपने लेख में इको शुरू में इस सवाल पर कि क्या सत्य की ताकत राजा की इच्छा या
शराब या शबाब की ताकत से ज्यादा है, संत एक्विनो के जवाब का उल्लेख करते हैं
जिसमें वे इन सबकों अलग-अलग प्रजाति की चीजें बताते हुए कहते हैं कि सत्य एक मात्र
ऐसी शक्ति है जो मनुष्य की कल्पनाशीलता को बढ़ाती है…वही ज्यादा ताकतवर है । इस पर इको लिखते है कि लेकिन अनुभव बताता है कि सत्य
को स्थापित होने में हमेशा लंबा समय लग जाता है और इसके लिये कितना लहू और कितने
आंसू बहाने पड़ते हैं । इसी बात से झूठ की ताकत का भी अनुमान लग जाता है ।
आगे इस लेख में इको मानव इतिहास में धरती को गोल नहीं चपटा मानने की तरह की आदमी
की आस्था और विश्वास से जुड़ी कई कहानियों का ब्यौरा देते हैं जिनसे वस्तुत: हमारा
इतिहास निर्मित हुआ है लेकिन जिन्हें हम आज मिथ्या मानते हैं । इस लेख के अंत में
इको लिखते हैं कि “गहराई में जाए तो, समाज का
पहला कर्त्तव्य यह है कि वह इतना चौकस रहे ताकि प्रत्येक दिन वह विश्वकोश का
पुनर्लेखन कर सके ।”
(Deep down, the first duty of the community is to be on
the alert in order to be able to rewrite the encyclopedia every day)
कुल मिला कर यह पूरा 2जी मामला यही बताता है कि हम जिस भी कहानी को सच मानते
हैं, उसपर प्रश्न उठाने के लिये हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए क्योंकि, इको के
शब्दों में, समाज का विवेक हमारे ज्ञान के दोषपूर्ण होने के बारे में हमारी हमेशा
की सतर्कता पर ही टिका हुआ होता है ।
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