शनिवार, 9 दिसंबर 2017

शैली की वक्रता और कथा शिल्प : संदर्भ मनु जोसेफ का नया उपन्यास


  • -अरुण माहेश्वरी 

    लेकिन तब गणतंत्र के दुश्मनों की भी सूरत सामने आती है आज नहीं तो कल , मनुष्यता के शत्रु, अपराधी, मनोरोगी, सब की गणतंत्र एक विशाल खेल है यह सबको इस यकीन का लालच देता है कि वे कुछ भी कर सकते हैं और बच सकते हैं और वे बहुत कुछ बच भी जाते हैं लेकिन तभी एक दिन, अनिवार्यत:, चमत्कार होता है
    (But then the foes of the republic, too, find the face. Sooner or later they all do. Enemies of humanity, criminals, psychotics, all of them. The republic is a giant prank. It lures all into believing that they can do anything and get away. And they get away with a lot. But then one day, inevitably surprise.)

    यह अंग्रेज़ी के भारतीय उपन्यासकार मनु जोसेफ़ के ताज़ा उपन्यास ‘Miss Laila armed and dangerous’ (मिस लैला हथियारबंद और खतरनाक) का एक प्रकार से अंतिम पैराग्राफ़ है बहुत से लोग सोचते हैं, वे कुछ भी करके बच जायेंगे, लेकिन यह गणतंत्र का अनोखा खेल है कि कोई बचता नहीं है किसी चमत्कार की तरह कभी कभी अपराधी का चेहरा सामने ही जाता है  

    मनु जोसेफ़ का यह उपन्यास, कहा जा सकता है, सोहराबुद्दीन और इशरत जहाँ के बदनाम एनकाउंटर की घटना को एक कहानी के रूप में गढ़ कर तैयार किया गया उपन्यास है इसमें एक महत्वपूर्ण चरित्र है दामोदरभाई, देश का सर्वोच्च शासक और उसके साथ है उसका दाढ़ी गिरोह इसमें एक काली दाढ़ी है तो लाल दाढ़ी वाला एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस का डीआईजी भी है और जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है - एक नौजवान जोड़े के एनकाउंटर की कहानी है जिसमें एक साधारण घरेलू मुस्लिम स्त्री लैला को खतरनाक बता कर उसके पति के साथ मार कर सड़क में फेंक दिया जाता है ; दुनिया को आतंकवादियों के एनकाउंटर के शौर्य की कहानी सुना दी जाती है  

    उपन्यास में इस घटना के दस साल बाद, मुंबई में ढह गई एक इमारत के मलबे में दबे हुए, ज़िंदगी की आख़िरी लड़ाई लड़ रहे पुलिस अधिकारी मुकुंदन को वह पूरा वाक़या याद आता है मुकुंदन खुद इन हत्याओं और उस स्त्री के साथ किये गये ज़ुल्मों का साक्षी था मलबे के नीचे एक सुरंग के जरिये उसे बचाने के लिये आई डाक्टर अखिला से उपन्यास के अंतिम पृष्ठों पर मुकुंदन का कथोपकथन देखिये

    अखिला
    कहो
    कौन जीता ?’
    कैसी जीत ?’
    चुनावों में
    दामोदरभाई
    वे मेरे भगवान है
    सही मेरे भी

    मुकुंदन और पाँच साल प्रतीक्षा करेगा फिर और पाँच, यदि उसने करना पड़ा तो लेकिन एक दिन आयेगा जब दामोदरभाई चुनाव हार जायेगा और मुकुंदन जाकर दाढ़ियों को खत्म कर देगा ” (पृष्ठ -209-210)

    इसके बाद ही उपन्यास का वह अंतिम पृष्ठ आता है -गणतंत्र के चमत्कारी खेल की घोषणा का पृष्ठ जिसका हमने यहाँ शुरू में जिक्र किया है मुकुंदन पिछले दस साल से इस घटना के एक-एक कर, तमाम सबूतों को अपने पास सहेज कर रखा हुआ है और उस सही वक्त का इंतज़ार कर रहा है जब वह उन्हें पेश करके मारे गये सब लोगों के लिये न्याय सुनिश्चित करेगा। 

    इस उपन्यास में दामोदरभाई के चरित्र को प्रकाशित करने वाली जो टिप्पणियाँ आई हैं, गौर करने लायक है  
    इसमें शुरू के पन्नों पर ही नाजियों से प्रेरित अखिला आइय्यर, पहली महिला जिसे आरएसएस में जगह मिली है, उसकी एक फिल्म का उल्लेख है - ‘White Beard’ (सफ़ेद दाढ़ी) इस फिल्म में प्रसंगवश पर्दे पर नेहरू जैकेट पहने दामोदरभाई आते हैं  

    वह उन लोगों में से है जिन्हें लगता है कि वे हैंडसम है गुजरात में मुसलमानों की कटाई के बाद से वह सारे राष्ट्र पर छा रहा है उदारवादी उसे जेल में डालना चाहते हैं हिंदू उसे पसंद करते हैं और नहीं बता सकते हैं कि क्यों ...लोग उसे भारत का पुतिन कहते हैं, इसका कारण है इसके पुरुषपन को देखिये वह मेरे पिता के बिल्कुल विपरीत है जब मेरे पिता एक कमरे में घुसते हैं, वे जानते हैं कि कोई उनके साथ हम-बिस्तर होना नहीं चाहता ...वह ऐसा आदमी है जो जानता है कि वह असाधारण है और जीवन का अर्थ है महज इसीकी एक शनै: शनै: पुष्टि करना यदि एक सिपाही उसके पास जाकर कान में कहे, “चीफ़, मैं भविष्य से आया हूँ मशीनों ने दुनिया पर अधिकार कर लिया है और तुम अंतिम मनुष्य प्राणी हो तुमने ही मुझे एक मिशन पर वापस भेजा है,” दामोदरभाई उस पर पूरा यकीन कर लेंगे ... मैं उसे भारत का सबसे खतरनाक आदमी नहीं मानता उसने हिंदुओं की भीड़ को नहीं कहा था कि मुसलमानों को काट डालो दामोदरभाई ने हत्यारों, गला काटने, बलात्कार करने और बच्चों को ज़िंदा जलाने वाले गुंडों को नहीं भेजा था इसका कोई सबूत नहीं है सैकड़ों हिंदू यह जानते हैं इसीलिये वे उसे पूजते हैं क्योंकि वह निरपराध है ”( पृष्ठ -6-10) 

    दामोदरभाई ने चंद हफ़्तों पहले मंच पर खड़े होकर कहा, ‘मुसलमान इतने गंदे क्यों होते हैं ?’ पचास हज़ार लोग हँसी से फट पड़े ...’एक मुसलमान आदमी चार बीबियां रखता है और वे बेडरूम में क्या कहते हैं, “हम दो हमारे पचीस।”...दामोदरभाई की कविताओं की तरह जो मुख्य रूप से बाघ दामोदरभाई, शेर दामोदरभाई, मधुमक्खी की तरह व्यस्त दामोदरभाई जैसी आम तौर पर दामोदरभाई पर ही होती है ” (पृष्ठ, 60-62) 

    उपन्यास के कुछ अध्यायों का शीर्षक ही है - दामोदरभाई चाँदी की दाढ़ी में चमकता सुंदर और छप्पन इंच की छाती का आदमी ; मुअनजोदाड़ो के सबसे प्रसिद्ध अवशेषों जैसा - जानकार लोगों के लियेदाढ़ीवाले आदमीकी जानी पहचानी मूर्ति महान प्राचीन हिंदुओं की भविष्यवाणी का सम्राट आधा इतिहास-आधा शरीर, ऐसे है दामोदरभाई उसे क़ुरान की प्रतियाँ जलाने में सबसे ज्यादा मज़ा आता है उससे प्रेरणा लेकर एक वक़ील ने याचिका दायर करके हिंदुओं के लिये क़ुरान को जलाने के अधिकार की मांग की है (पृष्ठ-108-109) 

    सिर्फ दामोदरभाई, बल्कि काली दाढ़ी और पूरी दाढ़ी ब्रिगेड और इनके भक्तों के बारे में ऐसे अनेक कथन और ब्यौरों से तैयार किया गया यह उपन्यास मनु जोसेफ़ के अपने खास उपहास और त्रासदी से भरे तीखे तंज के लहजे के लिये ही पढ़ा जाने लायक उपन्यास है वैसे तो इसमें अरुंधती राय और पी साईनाथ को दर्शाने वाले कॉमिक चरित्र भी आते हैं, लेकिन वे महज विषय को थोड़ा हल्का बनाने के लिये लाये जाने वाले विदूषकों की तरह होते हैं उपन्यास के मूल कथानक से उनका कोई खास रिश्ता नहीं है ये उपन्यास को बाँध कर रखने में सहयोगी अतिरिक्त गोंद की तरह है। 

    बहरहाल, पूरा उपन्यास गणतंत्र के खेल की इस गुँथी हुई संरचना के लिये ही महत्वपूर्ण हो जाता है जिसमें इसके अंदर ही अंदर एक ऐसी अदृश्य गतिशीलता भी होती है जो किसी चीज को अनंत काल के लिये पूरी तरह से दबने नहीं देती है न्याय के लिये उसे निकल कर सामने आना ही पड़ता है, जिसका हमने यहाँ बिल्कुल प्रारंभ में ही जिक्र किया है पाँच साल नहीं तो और पाँच साल बाद या और पाँच साल बाद, न्याय का वक्त तो आयेगा ही उपन्यास का यह संदेश मनु जोसेफ़ की जानी-पहचानी बेबाक़ नकारात्मक भंगिमा के अंदर से ही जिस प्रकार उभर कर सामने आता है, उससे लेखक का उत्कट मानवीय संवेदनात्मक उद्देश्य प्रकट होता है उसके सारे व्यंग्य और तंज नई अर्थवत्ता के साथ सामने आते हैं दामोदरभाई और दाढ़ी ब्रिगेड के आस-पास की पूरी दुनिया कितनी अस्वाभाविक, निष्ठुर षड़यंत्रकारियों की अमानवीय दुनिया है, उपन्यास इस पर रोशनी डालने में सफल है  

    हिंदी के पाठकों की स्मृति में मनु जोसेफ़ का नाम शायद ही होगा दुनिया इनके नाम से तब सबसे ज्यादा परिचित हुई थी जब 2010 के नवंबर महीने मेंओपन मैगेजीनमें 2008 के प्रसिद्ध राडिया टेप्स की लिखित प्रतिलिपि प्रकाशित हुई थी उस समय मनु जोसेफ हीओपन मैगेजीनके संपादक थे उसमें बड़े कॉरपोरेट घरानों के लिये दलाली करने में बरखा दत्त, वीर सिंघवी आदि की भूमिका जिस प्रकार उजागर हुई उसने पहली बार भारतीय पत्रकारिता की पवित्रता के सारे ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया था तभी मनु एक प्रसिद्ध पत्रकार के रूप में दूसरी भाषा के लोगों के लिये भी एक परिचित नाम हो गये थे  

    शायद यही काल उपन्यासकार मनु जोसेफ और पत्रकार मनु जोसेफ़ के विलय से एक विलक्षण शैली के धनी उपन्यासकार मनु जोसेफ के नये अवतार का समय साबित हुआ 2010 में उनका पहला उपन्यास SeriousMen(गंभीर लोग) गया था, जिसे कई प्रसिद्ध पुरस्कार मिलें इसके दो साल बाद ही दूसरा उपन्यास ‘The Illicit happiness of other people’(दूसरों की नाजायज़ खुशी) (2012) आया और इसे भी हिंदू लिटरेरी अवार्ड मिला और पहले उपन्यास की तरह ही देश-विदेश में काफी सराहा गया उसके लगभग पाँच साल बाद आए इस नये उपन्यास में भी उनकी शैली की वही वक्रता, पवित्रता के हर ढोंग से पर्दा उठाते जाने की बेपरवाह लेखनी यह बताने के लिये काफी है कि धारदार साहित्यिक पाठों के निर्माण में लेखक की निर्भीकता की कितनी बड़ी भूमिका हुआ करती है जिसे आम तौर पर लेखक का आत्म-नियंत्रण, self-censorship बोल कर साहित्य में काफी ऊँचा स्थान दिया जाता है, वस्तुत: वह लेखनी के लिये एक प्रकार की आत्म-हत्या के विधान की तरह होता है और यही वजह है कि ऊँचे सांस्थानिक पदों पर बैठे लोगों में से विरला ही कोई बहुत प्रभावशाली लेखक निकल कर आता है रवीन्द्रनाथ की तरहघरे बाइरेलिखने वाले वाले कम ही होते हैं  

    बहरहाल, मनु जोसेफ की बेबाक़ी, उनकी निर्भीकता और उनकी लेखनी की वक्रता के अलावा कथ्य की बारीकियों पर एक पत्रकार की तरह की उनकी पकड़ ही उन्हें एक विशेष उपन्यासकार का दर्जा देती है, जिसका प्रमाण यह समीक्षित उपन्यास भी है  

    (Manu Joseph, Miss Laila armed and dangerous, Fourth Estate, 2017, Harper Collins Publishers) 


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