बुधवार, 13 दिसंबर 2017

अमेरिका में ट्रंप को भारी चपत

 रिपब्लिकन्स के गढ़ में सिनेट चुनाव में उसका उम्मीदवार पराजित
अरुण माहेश्वरी

अमेरिका में अलबामा राज्य से सिनेट के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के कट्टर नस्लवादी और बदनाम कामुक उम्मीदवार रौय मूर की हार और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार डाउ जोन्स की जीत ने साल भर पहले जीते राष्ट्रपति ट्रंप के मुँह पर एक करारी चपत मारी है यह राज्य रिपब्लिकन पार्टी का एक गढ़ माना जाता है जहाँ पिछले बीस सालों में सिनेट के एक भी चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी को जीत नहीं मिली थी अल्बामा को गोरे नस्लवाद से प्रभावित राज्य के रूप में जाना जाता रहा है रिपब्लिकन उम्मीदवार, बदनाम मूर के समर्थन में ट्रंप ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, फिर भी उन्हें हार ही हाथ लगी  

100 सदस्यों के अमेरिकी सिनेट को अमेरिका में भारत में अपर हाउस राज्य सभा की तरह अपर चैंबर कहा जाता है जिसमें प्रत्येक राज्य के दो सिनेटर होते हैं यह एक प्रकार से हाउस आफ स्टेट्स ही होता है जिसमें प्रत्येक राज्य का, उसकी आबादी कुछ भी क्यों हो, बराबर का प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है हर दो साल में लगभग एक तिहाई नये सदस्य चुन कर आते हैं पचास राज्यों के कुल एक सौ सिनेटर 1913 के संविधान संशोधन के पहले तक भारत की तरह राज्यों की विधान सभा के सदस्य इनका चयन किया करते थे, लेकिन 1913 के बाद से इनका भी सीधे जनता के मतों से चुनाव होने लगा है इसीलिये सिनेट भी वहाँ अमेरिकी कांग्रेस के समान महत्व की मानी जाती है वहाँ के सिनेट की सदस्यता की अवधि : साल की होती है इसका अध्यक्ष अमेरिका का उप-राष्ट्रपति होता है  

अलबामा में रिपब्लिकन पार्टी की इस पराजय के बाद अब अमेरिकी सिनेट में रिपब्लिकन पार्टी के पास सिर्फ दो सीटों का बहुमत रह गया है अब 100 सदस्यों में रिपब्लिकन पार्टी के 52 सदस्य है, डेमोक्रेटिक पार्टी के 46 और दो सदस्य निर्दलीय है  

अलबामा में डाउ जोन्स की यह जीत बताती है कि अभी से अमेरिका में ट्रंप के उग्र नस्लवाद के विरुद्ध जनमत तैयार होने लगा है और आगामी साल में ही मुमकिन है वहाँ के सिनेट में ट्रंप का बहुमत खत्म हो जाए इससे वहाँ ट्रंप के निरंकुशपन पर भारी अंकुश लगेगा  

भारत में जो मोदीपंथी ट्रंप की जीत को दक्षिणपंथ की विश्व-व्यापी जीत बता कर मोदी की अपराजेयता का गाना गाते हैं, अलबामा राज्य का यह चुनाव अमेरिका में गुजरात के चुनाव की तरह ही वहाँ अभी से ट्रंपवाद के पतन का संकेत देने वाला चुनाव माना जा रहा है यह घटना-क्रम बताता है कि उग्रवादी दक्षिणपंथियों की संसदीय जनतंत्र में बहुत लंबी उम्र नहीं हुआ करती है  


अमेरिकी मीडिया डेमोक्रेटिक पार्टी की इस जीत को विवेक और बुद्धि की जीत बता रहा है  

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