रविवार, 5 अप्रैल 2020

कोरोना और सभ्यता का संकट वार्ता श्रृंखला - 4


—अरुण माहेश्वरी


चीन में कोविद -19 पर राष्ट्रीय शोक (3 अप्रैल) का एक दृश्य 

(4)

आज हम कोरोना के संदर्भ में पूरे मानव समाज के सामने जो एक सबसे बड़ी नैतिक चुनौती पैदा हो गई है और इस चुनौती ने अन्तरराष्ट्रीय राजनीति को कितनी गहराई से प्रभावित करना शुरू कर दिया है, इस विषय पर चर्चा करेंगे । खास तौर पर हमारी चर्चा के केंद्र में इस महामारी के कारण अमेरिका और चीन के संबंधों में जो एक साफ परिवर्तन दिखाई देने लगा है, उसके मानव समाज के लिये दूरगामी परिणामों को भी हम अपनी इस चर्चा का विषय बनायेंगे । अपनी इस श्रृंखला के प्रारंभ में ही हमने विश्व परिस्थिति में होने वाले मूलभूत परिवर्तनों की जो बातें कही थी, उसी के संकेतों के संदर्भ में इस चर्चा को देखने पर हमारी इस पूरी विचार श्रृंखला का तात्पर्य समझा जा सकेगा ।

आज कोरोना की परिस्थिति के बारे में सभी कोनों से दुनिया के सामने एक विकट परिस्थिति की बात कही जाने लगी है । कहा जा रहा है कि यह एक अजीब चुनौती है जब हमें जीवन, मृत्यु और अर्थव्यवस्था के बीच में किसी एक को चुनना होगा । विचार का विषय यह है कि इस महामारी के चलते मानव समाज को कितनी कीमत चुकानी होगी और जो चुकानी होगी वह बेहद कठिन होगी ।

कल्पना कीजिए, किसी अस्पताल में दो रोगी हैं और वहां सिर्फ एक वेंटिलेटर उपलब्ध है । बहुत जल्द ही यह संकट दुनिया के अस्पतालों के सामने आ सकता है । ऐसी स्थिति में इस बात को डाक्टर तय करेंगे कि किसका इलाज किया जाए और किसका न किया जाए ; कौन जी सकता है और कौन मर सकता है ।

इसी प्रकार कोरोना वायरस की वजह से अन्य गंभीर रोगों से ग्रसित लोगों का इलाज भी प्रभावित हो रहा है । बहुत साफ शब्दों में यह कहा जा रहा है कि इस रोग से लड़ने की कीमत के तौर पर कुछ रोजगारों को गंवाना और कुछ कंपनियों का दिवाला निकालना पड़े तो इसे बड़ी बात नहीं मानना होगा । लेकिन फिर भी यह सवाल रह जाता है कि इस ‘कुछ रोजगार और कुछ दिवालियापन’ से क्या तात्पर्य है ? कोई भी समाज कितने रोजगार गंवाने के लिये तैयार है और अर्थ-व्यवस्था को कितना और कब तक नुकसान पंहुचाया जा सकता है ? अर्थ-व्यवस्था के गड्ढे को कुछ ऐसा और इतना गहरा बताया जा रहा है जिसका कहीं कोई तल नहीं दिखाई देता है ।

हांलाकि इसमें न्यूयार्क के मेयर ऐन्ड्रयू कोमो ने कहा है कि हम मानव जीवन की डालर में कीमत नहीं लगा सकते हैं । लेकिन फिर भी किसी भी शासन को वर्तमान की चुनौती के आगे के बारे में भी सोचना ही पड़ता है । उससे पूरी तरह से आंख मूंद कर भी नहीं चला जा सकता है ।

इस प्रकार, कोरोना के तमाम तनावों ने आज पूरी मानवता को एक अजीब से एक दुराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है ।

आज जब हम यह चर्चा कर रहे हैं, सारी दुनिया में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या 11 लाख को पार कर चुकी है । कल अमेरिका में एक दिन में सबसे ज्यादा लगभग 1500 लोगों की मौत हुई है । सभी अनुमानों के अनुसार अमेरिका में ही अभी तक इसका चरम रूप सामने आना काफी दूर है । लाखों लोगों की मृत्यु की आशंका की बात कही जा रही है ।

भारत में जिस प्रकार एक झटके में लॉक डाउन का रास्ता अपनाया गया उसमें यह कहा जा रहा है कि यह फैसला करते वक्त खास तौर पर प्रवासी और दिहाड़ी मजदूरों की स्थिति पर एक क्षण के लिये भी विचार नहीं किया गया । भारत में अपनी दैनिक कमाई पर जिंदा रहने वालों की संख्या करोड़ों में है । यहां लॉक डाउन के जरिये बीमारी के प्रसार को काबू में रखने की एक सही कोशिश हुई है ताकि हमारे यहां स्वास्थ्य सेवाओं में जो कमियां हैं, उन्हें दूर किया जा सके । लेकिन सामाजिक-आर्थिक कारणों से ही इस लॉक डाउन को यदि और ज्यादा खींचा न जा सका, तो आशंका है कि कभी भी इस संक्रमण का अत्यंत विस्फोटक रूप में सामने आ सकता है । अमेरिका ने भी अब जाकर अर्थ-व्यवस्था को एक बार के लिये पूरी तरह से रोक दिया है, लेकिन वहां की सरकार लोगों को राहत देने और कंपनियों को बचाने के लिये पानी की तरह पैसे बहा रही है । यह उनके बूते में है, जबकि भारत में यह संभव नहीं है । राष्ट्रपति ट्रंप दो हफ्ते पहले तक यह कह रहे थे कि इसका उपचार इसे यूं ही छोड़ देने से ज्यादा महंगा साबित हो सकता है । लेकिन अंत में उन्हें दूसरा रास्ता अपनाना पड़ा है — उपचार को प्रमुखता देनी पड़ी है और उसकी कीमत के बारे में विचार को एक बार स्थगित रख देना पड़ा है ।
किस दिशा में बढ़ने से कितना लाभ और कितना नुकसान है, इस दुविधा में अभी सारी दुनिया फंसी हुई दिखाई देती है । इसी बीच राहत देने वाली बात यह है कि चीन ने अपने यहां नाना उपायों से इस रोग को काबू में रखते हुए अर्थ-व्यवस्था को क्रमशः खोलने का काम शुरू कर दिया है । इस बारे में चीन के अनुभव अभी सारी दुनिया के लिये बहुत उपयोगी साबित हो रहे है । इटली में पहुंचे चीन के डाक्टरों के बारे में पूरे पश्चिमी जगत में चर्चा है कि उनसे यह सीखने की जरूरत है कि उन्होंने इस बीमारी से लड़ने के लिये अपने को कितनी अच्छी तरह से तैयार कर लिया है ।

सिर्फ मानव संसाधन ही नहीं, चीन अभी सारी दुनिया को भारी मात्रा में इस रोग के परीक्षण के उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है । बाकी चिकित्साकर्मियों के सुरक्षा की सामग्रियों का भी चीन में अभी सबसे बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हो गया है ।

मजे की बात यह है कि कोरोना से जूझने के क्रम में पिछले दिनों चीन और अमेरिका के बीच जिस व्यापार युद्ध की बात सरगर्म थी, उसकी व्यर्थता को अब सभी पक्ष अच्छी तरह से समझ रहे हैं और आज अमेरिका और चीन दोनों ही आपसे में पूर्ण सहयोग और समन्वय के जरिये इस महामारी की चुनौती से निपटने की बात कहने लगे हैं ।
जहां तक इस महामारी के इलाज का पहलू है, आज की ही यह खबर है कि चीन ने कोरोना के एक प्रतिषेधक का मनुष्यों पर सफलता से प्रयोग करना शुरू कर दिया है । डब्लूएचओ के अधिकारियों को इस विषय पर हो रहे काम को बताने के लिये चीन ने कल अपने यहां आमंत्रित भी किया है । चीन के इस रवैये को, अपने तमाम कामों के साथ अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को जोड़ने और सबके साथ समन्वय कायम करके चलने के नजरिये को आज उसके हमेशा के शत्रु भी प्रशंसा के भाव से देख रहे हैं ।

कहा जा रहा है कि बहुत जल्द ही इस वायरस के लिये बड़े पैमाने पर एंटीबडी टेस्ट के किट्स उपलब्ध हो जाएंगे । जब भी कोई नया वायरस शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर हमला करता है तो उससे लड़ने के लिये शरीर में मौजूद एंटी बडी मोलिक्यूल ही, जिसे इम्यूनोग्लोबिन एम कहते हैं, सबसे पहले मैदान में उतरता है । ये वायरस की सतह पर मौजूद प्रोटीन से चिपक कर उसे नष्ट करने की कोशिश करते हैं । इसी क्रम में चंद दिनों के बाद शरीर में एक दूसरा एंटीबडी तैयार होता है जिसे इम्यूनोग्लोबिन जी आईजीजी कहा जाता है, जो आईजीएम के द्वारा शुरू की गई लड़ाई को आगे बढ़ाता है । आईजीएम के बारे में देखा गया है कि उसमें वायरस के विरुद्ध लड़ाई को बहुत दूर तक चलाने की ताकत नहीं होती है । वे ज्यादा से ज्यादा तीन चार हफ्तों तक इसे चला कर खत्म हो जाते हैं । परन्तु आईजीजी शरीर में दीर्घकालीन प्रतिरोधक शक्ति का आधार बनता है । यह कई सालों तक, यहां तक कि ताउम्र भी खून में बना रह सकता है ।

इन एंटीबडीज की खोज सार्स कोविद -2 के संक्रमण के समय में ही हो गई थी और इनकी सिनाख्त के किट्स भी तैयार हुए थे । उसी समय वैज्ञानिकों को जेनेटिक टेस्ट के समय कोविद – 19 वायरस देखने को मिल गया था । लेकिन तब तक उसे मानव शरीर में सक्रिय नहीं पाया गया था, इसीलिये उसके परीक्षण को आगे नहीं बढ़ाया गया । यह एक प्रकार के बाजर-केंद्रित सोच का परिणाम था जिसमें अनुपयोगी समझे जाने वाले पहलू पर परीक्षण के खर्च को टाल दिया जाता है । पर आज सार्स कोविद – 2 के वक्त के किट्स के जरिये ही इस बात की जांच हो सकती है कि कौन व्यक्ति अपने अंदर इस वायरस से लड़ने की क्षमता रखता है और कौन अभी इसके लिये तैयार नहीं है । इसी आधार पर यह भी तय किया जा सकता है कि किसे काम में अभी वापस लगा दिया जाए और किसे तब तक के लिये घर पर रहने के लिये कहा जाए जब तक प्रतिषेधक तैयार नहीं हो जाता है ।

जाहिर है कि इस प्रकार के कई परीक्षणों से लोगों के जीवन की रक्षा करते हुए सुचिंतित तरीके से अर्थव्यवस्था के विषय पर भी ध्यान दिया जा सकता है  —  जीवन, मृत्यु और अर्थव्यवस्था के बीच चयन के विषय में एक संतुलित कार्यपद्धति विकसित की जा सकती है । चीन, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया में इस प्रकार के परीक्षणों का इसी बीच इस्तेमाल किया जा चुका है । इसके लिये चीन ने अब ऐसे किट्स विकसित कर लिये है जिनसे पंद्रह मिनट में एंटीबडीज की उपस्थिति की सिनाख्त की जा सकती है, जैसी कि भारत में बहु प्रचलित प्रैगनैंसी टेस्ट का किट होता है । अब और देश भी इसके प्रयोग की दिशा में बढ़ रहे हैं, लेकिन वे इस टेस्ट को पूरी तरह से त्रुटिमुक्त बनाने पर भी बल दे रहे हैं । चीन अमेरिका सहित दुनिया को लाखों की संख्या में ये किट्स उपलब्ध करा रहा है ।

इन सबके बीच ही जन-स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास का मसला भी काफी महत्व के साथ सामने आया है । जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इस रोग का प्रारंभ सबसे पहले चीन के ही वुहान शहर से हुआ था । वहां इससे निपटने में चीन को दो महीने से भी ज्यादा समय लग गया था । उस समय चीन की सरकार इससे लड़ाई में पूरी तरह से बदहवास दिखाई दे रही थी । परंतु, आज अपने उस अनुभव की समीक्षा करते हुए चीन के ही अधिकारियों ने यह माना है कि वुहान की वह प्रारंभिक विफलता चीन की जन-स्वास्थ्य नीति में पिछले दिनों आए दोष का परिणाम थी । एक प्रकार की आत्मालोचना करते हुए वहां के नेशनल पिपुल्स फिनैंशियल एंड इकोनोमिक अफेयर्स कमेटी के अध्यक्ष ह्वांग शीफान ने अपने एक लेख में यह कहा है कि यह सब पिछले कई सालों के दौरान चिकित्सा सेवाओं में निवेश में कमी की वजह से हुआ था । देश के महानगरों में तो बड़े-बड़े अस्पताल हैं लेकिन वुहान की तरह के टायर थ्री के शहर इस मामले में पूरी तरह से वंचित थे । अच्छी चिकित्सा सुविधाओं के अभाव की वजह से इन शहरों के लोगों को इलाज के लिये बड़े शहरों की ओर भागना पड़ता था । यदि इस मामले में, सार्वजनिक चिकित्सा सेवाओं में पहले से जरूरी निवेश किया गया होता तो स्थिति इतनी बदतर नहीं होती । वुहान में ही बहुत पहले इस रोग पर काबू पा लिया गया होता । इसके लिये उन्होंने चीन के आधुनिकीकरण की 1978 से शुरू हुई मुहिम के सुफल के साथ ही आंकड़े दे कर पब्लिक हेल्थ सर्विसेस के साथ ही शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र की भी उपेक्षा की बात कही है । इसे अभी चीन में कोरोना से मिली एक बहुत बड़ी शिक्षा भी माना जा रहा है ।

बहरहाल, आज ही चीन के विदेश मंत्री वांग ई ने म्युनिख में पूरे अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का शुक्रिया अदा किया है कि उनके इस संकट की घड़ी में उन्हें दुनिया का पूरा सहयोग और समर्थन मिला । आगे भी चीन सारी दुनिया के सहयोग से इस महामारी से युद्ध की अग्रिम पंक्ति में अपनी भूमिका अदा करेगा । उन्होंने पूरब और पश्चिम के बीच बहुस्तरीय संबंधों को मजबूत करने की बात पर भी बल दिया ।

चीन में अमेरिका के राजदूत ने भी आज ही अपने एक बयान में कहा है कि हमें पुरानी सारी बातों को भूल कर परस्पर सहयोग और समर्थन की दिशा में काम करने का रास्ता निकालना होगा । चीन की ओर से बयान में तो यहां तक कहा गया है कि विचारधारात्मक मतभेदों की ऐसे मामलों में कोई अहमियत नहीं है ।

काफी पहले नोम चोमस्की ने यह कहा था कि दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति होने के नाते अमेरिकी सरकार की नीतियों में जनता के पक्ष में यदि मामूली सा परिवर्तन भी होता है तो सारी दुनिया पर उसका बहुत व्यापक और गहरा असर पड़ सकता है । हम कहेंगे कि आज के हालात में चीन और अमेरिका के संबंधों में सुधार और इसके चलते सारी दुनिया में अन्तरराष्ट्रीय सहयोग, समर्थन और समन्वय का जरा भी भाव पैदा होता है तो वह कोरोना से पैदा हुए विश्व मानवता के सामने अस्तित्वीय संकट का एक बड़ा सुफल माना जाएगा । आज दुनिया में पूरब और पश्चिम के बीच सहयोग और परस्पर समझ की बात कही जाने लगी है । पूर्वी एशिया के देशों के लोगों की कई आदतों पर पहले दुनिया में जो मजाक उड़ाये जाते थे, जिसमें मास्क पहन कर घूमना भी उनकी आदत में शामिल था, उसे अपनाने के लिये आज नए सिरे से सभी देशों में बल दिया जाने लगा है ।

जैसा कि इस श्रृंखला के प्रारंभ में ही हमने अस्तित्व के सामने संकट की परिस्थिति में आदमी में पैदा होने वाले श्रेष्ठ मानवीय और नैतिक मूल्यों की बात की थी, जैसे-जैसे दुनिया पर इस संकट की छाया गहरी हो रही है, हम अन्तरराष्ट्रीय सहयोग और समन्वय के उन अपेक्षित नैतिक मूल्यों के विकास को साफ देख सकते हैं ।

इसके साथ ही हम अपनी इस वीडियो वार्ता पर एक बार के लिये विराम देते हैं ।


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