बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

सोशल मीडिया की गुंडा वाहिनी


-अरुण माहेश्वरी

भारतीय राजनीति के हर युग की तरह इंटरनेट के इस युग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक सबसे मौलिक अवदान है - सोशल मीडिया की गुंडा वाहिनी।

आरएसएस अपनी नब्बे साल से ज्यादा की उम्र में भारतीय राजनीति में शुरू से इस प्रकार के मौलिक योगदान करता रहा है। इसका जन्म जिस हिंदुत्व की विचारधारा से हुआ, उसके पहले प्रवर्त्तक वीर सावरकर का योगदान था सशस्त्र क्रांतिकारी से अंग्रेजों की गुलामी में प्रत्यावर्तन का योगदान। 1913 में ही उन्होंने कालापानी से अंग्रेज सरकार के नाम माफीनामा लिख कर सदा-सदा के लिये उनकी खिदमत करने का प्रण लिया था। 14 नवंबर 1913 की तारीख में लिखा हुआ उनका यह पत्र राष्ट्रीय शर्म के एक ज्वलंत दस्तावेज के तौर पर आज भी भारतीय अभिलेखागार में मौजूद है।

फिर ऐसा ही एक बड़ा योगदान किया था राष्ट्रीय स्वयंसेवक के स्थापनाकर्ता बलीराम केशव हेडगवार ने छल की राजनीति का। वे 1920 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में एक बार सिर्फ दिखावे के लिये जेल गये ताकि छल से वे समाज में अपने लिये विश्वसनियता हासिल कर सके। उनके संघी जीवनीकार भिशीकर ने अपनी पुस्तक ‘केशव : संघ निर्माता’ में (पृष्ठ-31) और बाद में आरएसएस के प्रथम महासचिव जी एम हुद्दर ने विशेष तौर पर लिखा है कि ‘‘हेडगेवार 1920 में जेल गए, यह सच है, लेकिन इससे यह नहीं पता चलता कि उन्हें उस जन-आंदोलन में विश्वास था। वह तो यह दिखाने के लिए था कि जिस तरह जन-आंदोलन में विश्वास करने वाले देशभक्त जेल जा सकते हैं, उसी तरह वे भी जेल से नहीं डरते।’’(इलस्ट्रेटेड वीकली आफ इंडिया, 7 अक्तूबर, 1979)

इसके बाद उसी दौर में इन्होंने मुखबिरी का उदाहरण पेश किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने 1 सितंबर 1942 के दिन, जब पूरा देश भारत छोड़ो आंदोलन में उत्ताल था,  ग्वालियर में सेकेंड क्लास मजीस्ट्रेट के सामने धारा 164 के तहत आंदोलनकारी ककुआ उर्फ लीलाधर और महुआ के खिलाफ मुखबिरी का बयान दिया था।

फिर आजादी के ठीक बाद इनका सबसे बड़ा योगदान गांधीजी की हत्या की साजिश के रूप में रहा है। उसकी वजह से आरएसएस पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया और उसके सरसंघचालक गोलवलकर को जेल में बंद कर दिया। इस हत्याकांड में सावरकर को तो अभियुक्त भी बनाया गया था, लेकिन निहायत तकनीकी कारणों से वे बच गये। आरएसएस भी अपने पर से प्रतिबंध उठवाने में सफल हो गया।

सन् ‘47 के बाद, 1951 में जनसंघ नाम से अपना अलग से राजनीतिक दल बनाने के बाद भी लगभग 16 सालों तक यह समाज में सिर्फ तमाम प्रकार की पोंगापंथी बातों के प्रचार-प्रसार में जरूर लगा रहा, लेकिन कोई राजनीतिक शक्ति नहीं बन पाया। सन् ‘67 में कांग्रेस के शासन से व्यापक मोहभंग की पृष्ठभूमि में जब कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ तब उत्तर प्रदेश और बिहार की संविद सरकारों में जनसंघ भी शामिल हो गया। वह जयप्रकाश के बिहार आंदोलन के साथ भी रहा, लेकिन जब 1975 में इंदिरा गांधी ने आंतरिक आपातकाल लगाया तो जेलों में आरएसएस के लोगों ने थोक के भाव माफीनामें लिखे थे। समाजवादी नेता बाबा आधव और मधुलिमये ने इसके बारे में लिखा है कि तत्कालीन सरसंघचालक बाबा साहब देवरस ने इंदिरा गांधी से काफी पत्राचार किये थे और संघ के लोग जेलों में भी ‘‘संजय गांधी के कम्युनिस्ट-विरोधी, व्यक्तिवादी और अधिनायकवादी विचारों का स्वागत करते थे।’’ अर्थात तब भी राजभक्ति की पुरानी परंपरा बदस्तूर जारी थी।

सन् ‘77 के बाद जनता पार्टी की सरकार में शिरकत करके उसे गिराने में भी इनकी बड़ी भूमिका रही। और नब्बे के दशक में इन्होंने उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी की सरकार का लाभ उठा कर जिस प्रकार सैकड़ों साल पुरानी बाबरी मस्जिद को ढहा दिया, वहां से इनके विध्वंसक कारनामों का एक नया इतिहास शुरू हुआ।
इसके बाद सन् 2002 में गुजरात का जनसंहार इनकी अब तक की कीर्तियों के शीर्ष पर माना जाता है, जिसके नायक नरेन्द्र मोदी जी आज देश के प्रधानमंत्री बने हुए हैं।

भारतीय राजनीति में विदेशी शासकों की गुलामी, राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के साथ छल, धोखा, हत्या, और जनसंहार के इनके इन तमाम मौलिक अवदानों के साथ तानपुरे के सहायक नाद की तरह इनके सारे कार्यों की पृष्ठभूमि में मुसलमान-द्वेष का स्वर तो बराबर जारी रहता है। ये घोषित तौर पर भारत की हर मुसलमान बस्ती को लघु पाकिस्तान बताते रहे हैं और इन्हें उजाड़ना अपना एक पावन कत्र्तव्य !

इस प्रकार, नकारात्मकता और पश्चगामिता के अपने अब तक के इस लंबे इतिहास में, सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय राजनीति में इनका एक और मौलिक अवदान रहा - सोशल मीडिया पर एक इंटरनेट गुंडा वाहिनी के गठन का अवदान, जिसने पूरे सोशल मीडिया को गंदी से गंदी गालियों और धमकियों के एक सड़े हुए क्षेत्र का रूप देने की भरसक कोशिश की है। आरएसएस की गोपनीय अंधेरी प्रयोगशाला में संवाद के इस उदीयमान आभासी क्षेत्र के लिये किस प्रकार के विषाणुओं को तैयार किया जाता है, इसका एक जीवंत ब्यौरा हमें मिलता है - स्वाती चतुर्वेदी की सद्य प्रकाशित किताब ‘I am a Troll’ में।



स्वाती चतुर्वेदी एक खोजी पत्रकार है जो अभिव्यक्ति की आजादी को ही अपनी रोजी-रोटी बताती है। अब तक उनके खिलाफ सरकारी गोपनीयता कानून के तहत भारत सरकार की ओर से कई मुकदमें दायर हो चुके हैं। स्वाती ने अपनी किताब में सोशल मीडिया के ट्रौल्स को ऑनलाइन गुंडे बताया है, जो भड़काऊ बातों अथवा तस्वीरों के जरिये लोगों से पंगा लिया करते हैं, गाली-गलौज करके सामने वाले के मिजाज को खराब करते हैं। खुद स्वाती आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के ऐसे गुंडों की शिकार बनती रही है, जो स्वाती के बारे में न जाने कितने प्रकार कामुक कहानियां बना-बना कर, गंदी से गंदी बातों की झड़ी लगाते रहे हैं। अपने अलावा टीवी के एंकर बरखा दत्त और राजदीप सरदेसाई की तरह के लोगों के खिलाफ इनके द्वारा चलाये गये अभियानों का बयान करते हुए स्वाती ने बताया है कि कैसे इस प्रकार के काम में बौलीवुड के गायक अभिजीत की तरह के लोग भी शामिल होते हैं।


स्वाती ने अभिजीत के गंदे और धमकी भरे ट्विट सहित ढेर सारे अन्य ट्विट को अपनी किताब में संकलित किया है। इसमें एक महत्वपूर्ण कहानी आरएसएस की इंटरनेट शाखाओं के बारे में है। और उसमें सबसे ज्यादा उल्लेखनीय तथ्य यह है कि खुद हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस पूरी गुंडा वाहिनी के सरगना की तरह काम करते हैं। भाजपा के इस आईटी सेल का प्रमुख है -अमेरिका से आया हुआ अरविंद गुप्ता, जो सीधे नरेन्द्र मोदी के संपर्क में रहता है। 2014 के चुनाव के वक्त वह हर रोज रात के समय नरेन्द्र मोदी से बात करके यह तय करता था कि कल किसके खिलाफ घिनौना अभियान चलाना है और दूसरे दिन ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सअप पर लगी हुई सैकड़ों लोगों की अपनी सेना को वह पूरी कहानी बना कर उस पर लग जाने के लिये दे देता। इन संवादों में वे अपने शिकार के खिलाफ गंदी से गंदी बातों, गालियों आदि का प्रयोग करते थे और खास तौर पर यदि शिकार कोई स्त्री हो तो इनका रूप और भी वीभत्स हो जाता था। फोटो शॉप पर उस स्त्री की गंदी से गंदी तस्वीर तैयार करके किस प्रकार पोस्ट की जाती थी इसकी पूरी कहानी तमाम तथ्यों के साथ स्वाती ने अपनी इस किताब में दर्ज की है।

बीजेपी का यह सेल उसके 11 अशोक रोड स्थित सदर दफ्तर से मुख्य रूप से काम करता था और फिर सदर दफ्तर से भेजे गये संदेशों को देश भर में उनके लोग दिन भर दोहराते रहते थे। खुद नरेन्द्र मोदी इन सभी ट्विटर हैंडल को फॉलो करते है, जिसका इन ट्विटर अकाउंटों पर बाकायदा उल्लेख भी होता है।

इस किताब में एक कहानी है साधवी खोसला नामक एक स्त्री की, जिसने अपने को एक भाजपा का ट्रौल बताया है और साथ ही यह भी बताया है कि किस प्रकार अरविंद गुप्त और उसके लोगों ने एक देशभक्त कांग्रेसी परिवार से आई इस शिक्षित महिला की भावनाओं का गलत ढंग से उपयोग करके इंटरनेट पर उससे वे सारे गंदे काम करवायें जिनके लिये आज उसे बेहद अफसोस हो रहा है। उसने यह बताया है कि किस प्रकार अरविंद गुप्त ने उनके जरिये बरखा दत्त के अनेक मुस्लिम पतियों की कहानी बनवाई, चिदंबरम को बदनाम करने का अभियान चलवाया। नरेन्द्र मोदी के इशारों पर काम करने वाले अरविंद गुप्ता ने राजीव गांधी के खिलाफ हिंदू-विरोधी सोनिया गांधी की साजिशों, प्रियंका गांधी में तुनकमिजाजी की बीमारी, पति राबर्ट वाडरा से उनके अलग हो जाने और राहुल गांधी के नशीली दवाएं लेने और एक गैर-हिंदू औरत से उनकी शादी और उस रखैल से राहुल गांधी के बच्चों तक की झूठी कहानियां इंटरनेट पर चलवाई थी। राहुल गांधी का मजाक उड़ाते रहो, यह उनका हमेशा का एक लक्ष्य है।


साधवी खोसला को बाद में तब होश आया, जब उसे यह लगा कि स्मृति इरानी की तरह की नेता और अरविंद गुप्ता भी उसके साथ गुलामों की तरह का सलूक कर रहे हैं। खोसला ने आरएसएस के इस गुह्य संसार में उसके नेता राम माधव की भूमिका का भी उल्लेख किया है। 2014 के बाद भी जब उसने पाया कि इस कथित आईटी सेल का काम सिर्फ और सिर्फ अफवाहें फैलाना और सामाजिक सौहार्द्र को नष्ट करना है, तब उसके कान खड़े होने लगे। खास तौर पर जब अरविंद गुप्ता ने उनसे फिल्म अभिनेता शाहरुख खान के खिलाफ जहर उगलने के लिये कहा तो खोसला को लगने लगा कि वह कौन से गंदे संसार में शामिल हो गई है !

इस किताब की सबसे बड़ी खूबी है कि इसमें ऐसे ऑनलाइन गुंडों को तैयार करने की आरएसएस की सारी गतिविधियों का खुलासा किया गया है। और साथ ही यह बताया गया है कि किस प्रकार खुद प्रधानमंत्री ऐसे गुंडों को अपने निवास स्थान पर बुला कर उन्हें दावत देते हैं, उनके कामों के लिये उनकी हौसला-अफजाई करते हैं।

इस किताब के पूरे बयान को पढ़ कर अनायास ही राणा अयूब की किताब ‘गुजरात फाइल्स’ की याद ताजा हो जाती है, जिसमें गुजरात में मोदी-शाह के गुजरात शासन के पूरे तंत्र के खुंखार चेहरे की एक पहचान मिलती है। आज प्रधानमंत्री के सामने यह सवाल उठाने की जरूरत है कि वे क्यों ऐसे अनेक लोगों के ट्विवटर अकाउंट फ़ॉलो करते हैं जिनमें खुले आम दूसरों के लिये माँ-बहन की गालियों का प्रयोग किया जाता है, स्त्रियों को बलात्कार की और जान से मार देने की धमकियाँ दी जाती है ? यह सवाल इसलिये, क्योंकि उन ट्विटर अकाउंटों में बाक़ायदा यह लिखा हुआ है कि उन्हें प्रधानमंत्री का आशीर्वाद मिला हुआ है और प्रधानमंत्री उन्हें फ़ॉलो करते हैं । कुछ ने तो बाक़ायदा प्रधानमंत्री से हाथ मिलाते हुए अपनी तस्वीरें भी लगा रखी हैं ।

स्वाति चतुर्वेदी की किताब में गीतिका नामके एक ट्विटर का जिक्र है । इसके 80000 फ़ॉलोवर है जिनमें हमारे प्रधानमंत्री जी भी शामिल है । गीतिका ने 9 जुलाई 2016 को एक ट्विट किया जिसमें कश्मीर के बुरहान वानी के जनाज़े की तस्वीर के साथ यह लिखा गया था कि जनाज़े में शामिल लोगों पर बम मार कर इसमें शामिल सभी बीस हज़ार लोगों को स्थायी आजादी दे दी जानी चाहिए थी । एबीपी के न्यूज़ एडिटर अभिसार शर्मा ने सवाल किया कि क्या देश के एक संवेदनशील राज्य में जनसंहार की बात करने वाले ट्विट हैंडल को प्रधानमंत्री को फ़ॉलो करना चाहिए ?क्या प्रधानमंत्री से नहीं पूछा जाना चाहिए कि क्यों वे ऐसे लोगों के साथ अपने को जोड़े हुए हैं ?


इस किताब से फिर एक बार साफ होता है कि भारत में आरएसएस नामक ‘हिदुत्व’ के प्रचार में लगा एक ऐसा गोपनीय संगठन है जिसके पास समाज को देने के लिये कोई स्वस्थ मूल्य नहीं है। यह आज भी अपने पुराने छल, छद्म, धोखाधड़ी, साजिश, हत्या और सांप्रदायिक नफरत के कामों में लगा हुआ है। नई तकनीक का प्रयोग करके इस काम को इसने नई गति दी है।

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