गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

यूपी चुनाव मोदी जी पर एक जनमत-संग्रह भी होगा


-अरुण माहेश्वरी



वैसे तो उत्तर प्रदेश की राजनीति दूसरे राज्यों से ज्यादा भिन्न नहीं है। अन्य राज्यों की तरह ही जात-पात-धर्म-क्षेत्र के सारे विषय यहां भी मौजूद है। भ्रष्टाचार और विकास के विषय, व्यवस्था-विरोध के प्रश्न भी हैं। लेकिन इन सारी समानताओं के बावजूद एक बात में यूपी बिल्कुल अलग और निराला है, वह है इसकी आबादी की विशालता। भारत में कुल 42 करोड़ हिंदी भाषी लोगों में से 21 करोड़ लोगों का प्रदेश। अर्थात, भारत के वैविध्य में एकता के एक सबसे बड़े सूत्र की बागडोर इसी राज्य के हाथ में है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति की प्रादेशिकता के साथ ही इसके राष्ट्रीय आयामों से कभी इंकार नहीं किया जा सकता है। इसे भारत को प्रधानमंत्री प्रदान करने वाले राज्य के तौर पर माना भी जाता रहा है।

अभी यूपी में समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार है। लेकिन मात्र तीन साल पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां की 80 लोकसभा सीटों में से 72 पर (इनमें अपना दल को मिली दोनों सीटें भी शामिल है) भाजपा की जीत हुई और उसी के बल पर उसे लोकसभा में बहुमत हासिल हुआ था। इस बार भी भाजपा का चुनाव प्रचार किसी स्थानीय नेता को सामने रख कर नहीं, अकेले मोदी जी को सामने रख कर किया जा रहा है। भाजपा राष्ट्रीय राजनीति में यूपी की महत्ता को जानती है और इसीलिये उसने बिल्कुल सही इन चुनावों को महज प्रदेश का चुनाव मानने की गलती नहीं की है। भाजपा के सारे पोस्टर मोदी-शाह की तस्वीरों से सजे हुए हैं। यूपी के जरिये वे अपनी केंद्र की सरकार के बारे में ही लोगों से राय मांग रहे हैं।

यूपी के चुनावों के बारे में अब तक के जो भी रिपोर्ट-सर्वेक्षण आए हैं, उनमें से एक ने भी, भूल से भी यूपी में भाजपा के पूर्ण बहुमत की बात नहीं कही है। आम तौर पर तो सभी कोनों से समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन के काफी आगे होने की बात आ रही है, मायावती को डार्क हौर्स के रूप में याद किया जा रहा है। लेकिन ‘आजतक-नियल्शन’ के सर्वेक्षण में जरूर त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान देते हुए उसमें भाजपा को पहले स्थान पर रखा गया है। सचमुच, ‘आजतक-नियल्शन’ वालों का यह सर्वेक्षण अगर न आया होता, तो लोगों को संदेह होने लगता कि क्या अब न्यूज चैनलों की खरीद-फरोख्त का सिलसिला खत्म हो गया है !

बहरहाल, तीन साल पहले लोकसभा की 80 में से 72 सीटें ले जाने वाली भाजपा की यूपी में अभी से जो दशा दिखाई दे रही है, उससे इतना तो बिना किसी दुविधा के कहा जा सकता है कि मोदी की चमक पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। आशंका इस बात की भी व्यक्त की जा रही है कि वहां इस बार भाजपा सपा, बसपा और कांग्रेस के बाद संभवत: चौथे स्थान पर रहेगी।

अगर यूपी में ऐसा ही कुछ होता है तो यह कहने में भी कोई दुविधा नहीं रहेगी कि मोदी जी ने देश की सत्ता पर बने रहने का नैतिक अधिकार पूरी तरह से गंवा दिया है। यूपी चुनाव को उन्होंने जिस प्रकार अपने लिये एक प्रकार के जनमत-संग्रह का रूप दिया है, उसके परिणामों को स्वीकारना उनका नैतिक दायित्व होगा। भारत में चुनाव सुधारों की यह एक बहुत पुरानी मांग है कि मतदाताओं को अपने निर्वाचित प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए। यूपी के इन चुनावों को कुछ इसी प्रकार लिया जाना चाहिए। यह सिर्फ एक प्रदेश की जनता की नहीं, बल्कि देश भर के बहुसंख्यक लोगों की राय होगी।

हमारा मानना है कि यूपी के चुनाव परिणामों में भाजपा की पराजय के बाद मोदी जी को सत्ता से हटने के लिये मजबूर करके ही यूपी के मतदाताओं की राय का पूरा सम्मान होगा।

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