अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के नये अध्यक्ष बने टौम पेरेज
(क्या भारत के राजनीतिक संस्थान अभी के अमेरिकी घटना-क्रम से कुछ सीखेंगे ! )
-अरुण माहेश्वरी
कीथ एलिसन
टौम पेरेज
हिलैरी क्लिंटन की पराजय के बाद अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी में यह स्वाभाविक सवाल उठ खड़ा हुआ था कि डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी (DNC) का नेतृत्व आगे किसके पास होगा । उनके संविधान के अनुसार DNC के अध्यक्ष के पास यह नेतृत्व होता है, जिसके चुनाव की अपनी एक प्रक्रिया है ।
कल (25 फ़रवरी को) वहाँ के अटलांटा में यह चुनाव संपन्न हुआ जिसमें टौम पेरेज दो राउंड के मतदान के बाद डीएनसी के चेयरमैन चुने गये और उन्होंने वाइस-चेयरमैन पद के लिये कीथ एलिसन के नाम का प्रस्ताव रखा जिसे सर्व-सम्मति से स्वीकार लिया गया ।
डीएनसी के अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया के नियम के मुताबिक़ इसके 447 सदस्यों में से कम कम से कम 20 सदस्यों की सिफ़ारिश से कोई भी इस पद के लिये खड़ा हो सकता है । इसमें मतदान के एक के बाद एक चक्र उस समय तक चलते रहते हैं, जब तक किसी एक को 224 मत नहीं मिल जाते है । इस बार इस पद के लिये वहाँ कुल आठ नाम आए थे ।
इस बार के चुनाव में पेरेज को ही ओबामा और हिलैरी क्लिंटन का परोक्ष समर्थन मिला हुआ था । लेकिन इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण बात थी, वह यह कि डेमोक्रेटिक पार्टी में वामपंथी और मजदूर वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में ख्यात बर्नी सैंडर्स ने इसमें अपना खुला समर्थन कीथ एलिसन को दिया था । सैंडर्स ने एलिसन का समर्थन करते हुए जो महत्वपूर्ण बातें कही हैं, उनकी वजह से ही हमारे जैसों के लिये डेमोक्रेटिक पार्टी की डीएनसी के इस चुनाव में अतिरिक्त आकर्षण पैदा हो गया था ।
बर्नी सैंडर्स ने एलिसन का समर्थन करते हुए यह पहला सीधा सवाल उठाया था कि " क्या हम विफल हुए यथा-स्थितिवाद के साथ चिपके रहेंगे या डेमोक्रेटिक पार्टी के मूलभूत पुनर्विन्यास की दिशा में कदम उठायेंगे? (Do we stay with a failed status-quo approach or do we go forward with a fundamental restructuring of the Democratic Party?” )
सैंडर्स ने जिन एलिसन को अपना समर्थन दिया वे मिनेसोटा राज्य के लिये कांग्रेस के सदस्य चुने गये हैं । उन्हें एक करोड़ बीस लाख सदस्यों के ट्रेडयूनियनों के संघ एएफएल-सीआईओ का समर्थन प्राप्त है । अगर सैंडर्स द्वारा समर्थित एलिसन का इस पद के लिये चुनाव होता को निश्चित रूप से अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी की यह एक ऐतिहासिक घटना होती ।
यहाँ सबसे महत्वपूर्ण, ग़ौर करने लायक बात यह है कि अमेरिका के आज के मुस्लिम-विरोधी माहौल में एलिसन पहले मुसलमान है जो अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य के अलावा कांग्रेस के प्रगतिशील गुट के सह-सभापति भी है । वहाँ के अश्वेत जातीयतवाद के साथ उनके मधुर संबंध रहे हैं और उनके अपने शहर डेट्रायट में स्थापित 'नेशन आफ इस्लाम' के नाम से राजनीतिक-धार्मिक आंदोलन के प्रदर्शनों में भी उन्होंने हिस्सा लिया है ।
सैंडर्स इसीलिये एलिसन को एक मजदूर नेता के अलावा अमेरिका के सभी अल्प-संख्यक समुदायों में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए, उनकी अध्यक्षता को डेमोक्रेटिक पार्टी के यथास्थितिवादी से निकल कर एक मूलभूत पुनर्विन्यास के लिहाज से बहुत जरूरी बता रहे थे ।
यह सच है कि सैंडर्स फिर एक बार भले अपने मंसूबे में सफल नहीं हुए हैं, लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी के उपाध्यक्ष के पद के लिये सर्व-सम्मति से एलिसन का चुना जाना भी एक कम महत्वपूर्ण घटना नहीं है । इससे पता चलता है कि अमेरिका की सारी प्रगतिशील ताक़तें ट्रंप युग का आगे मुक़ाबला करने के लिये किस प्रकार अपने को नये रूप में तैयार करके गोलबंद हो रही है । वे ट्रंप के मुसलमान-विरोधी और आप्रवासी-विरोधी फोबिया से ज़रा भी आतंकित नहीं हैं ।
भारत के सभी वामपंथी, जनतांत्रिक और धर्म-निरपेक्ष राजनीतिक दलों के लिये इसमें बहुत कुछ ऐसा है जिससे वे शिक्षा लेकर अपने पुनर्विन्यास और नयी गोलबंदी की दिशा में आगे कदम उठा सकते हैं । मोदी-उत्तर भारत के नये भविष्य के लिये इस पर ग़ौर करने की ज़रूरत है ।
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