शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

बॉब डिलन को साहित्य का नोबेल दिये जाने के प्रसंग में :




-अरुण माहेश्वरी

samalochan.blogspot पर Geet Chaturvedi ने बॉब डिलन के गीतों के साहित्यिक महत्व को रेखांकित करने के लिये एक अच्छी पोस्ट लगाई है। वह पोस्ट इस विषय में खुद में यथेष्ट न होने पर भी उसे इस दिशा में विचार की एक गंभीर और सराहनीय प्रस्तावना कहा जा सकता है। यद्यपि हिंदी में अभी (आज के दैनिक हिंदुस्तान को देखिये) जो लोग बॉब डिलन को साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिये जाने पर कुछ शंकाएं जाहिर कर रहे हैं, वे भी डिलन के गीतों के बारे में कितना जानते हैं, इसपर भारी संदेह किया जा सकता है।

बहरहाल, बंगाल में बाउल गान के एक सबसे बड़े गायक हुए हैं - पूर्णचंद्र दास बाउल। अभी उनकी उम्र अस्सी को पार कर गई है। दो दिन पहले, 14 अक्तूबर के आनंदबाजार पत्रिका में बॉब डिलन के बारे में उनका एक संस्मरण प्रकाशित हुआ है। वे बॉब के गहरे संपर्क में आए थे और लगभग 50 साल पहले, जब वे मात्र 30-32 साल के थे, पूरा एक साल अमेरिका में बॉब के साथ बिताया था । उस दौरान दोनों ने कई जगहों पर साथ-साथ अपनी प्रस्तुतियां भी दी थी। बॉब के साथ अपने अनुभवों पर पूर्णदास बाउल ने लिखा है कि ‘वह तो बाउल था’। इसके साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि हमारे यहां सबसे बड़े बाउल हुए हैं - रवीन्द्रनाथ।

कहना न होगा, पूर्णदास बाउल के इस कथन के मर्म को यदि समझ लिया जाए तो इस पूरे प्रसंग की गुत्थी को समझना बहुत आसान हो जायेगा।

जो भी हो, गीत चतुर्वेदी की उक्त पोस्ट पर मैंने एक विस्तृत टिप्पणी की थी। उसे यहां मैं अलग से भी दे रहा हूं, इस उम्मीद के साथ कि संभवत: उससे भी इस प्रसंग पर कुछ रोशनी गिर पायेगी।

यहां मैं समालोचन ब्लागस्पाट के उस लिंक को भी दे रहा हूं जिसमें गीत चतुर्वेदी की वह पोस्ट लगाई गई है।

गीत चतुर्वेदी की पोस्ट पर हमारी टिप्पणी -

‘‘ गीत चतुर्वेदी को बॉब डिलन पर इस बहुत अच्छे लेख के लिये बधाई। हम रवीन्द्रनाथ के प्रदेश से आते हैं। रवीन्द्रनाथ को उनके गीतों ने उनके जीवन में ही लगभग किसी पैगंबर के स्थान पर पहुंचा दिया था।

इस बारे में अन्नदाशंकर राय ने अपनी किताब ‘रवीन्द्रनाथ’ में अपना एक संस्मरण संकलित किया है जब वे पूर्व बंगाल के उस राजशाही जिले के कलेक्टर बन कर गये थे, जिसमें रवीन्द्रनाथ की जमींदारी पड़ती थी और एक बार वहीं पर उन्हें रवीन्द्रनाथ से मिलने का मौका मिला था। मैंने हरीश भादानी पर साहित्य अकादमी के लिये मोनोग्राफ में भी इसका जिक्र किया है। यहां मैं उस पूरे प्रसंग को रखने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं।

समय बहुत कम था। किसी तरह दौड़ते-भागते वे रवीन्द्रनाथ से मिले थे। रवीन्द्रनाथ के हाउसबोट पर जब वे उनके बगल में बैठें, तब रवीन्द्रनाथ ने उनसे कहा, ‘‘इन लोगों को देख रहे हो ? पूरे रास्ते मेरे साथ पैदल चले आरहे हैं। पतिसर में मेरे आने की बात नहीं थी। ये लोग ही अंतिम बार के लिये देखना चाहते थे। अर्से से देखा नहीं है।...
‘‘वे क्या कह रहे हैं, सुनोगे? कहते हैं पैगंबर को आंखों से नहीं देखा है। आपको देख रहे हैं।’’
अन्नदाशंकर लिखते हैं : ‘‘पैगंबर को क्या मैंने देखा है? लेकिन इस आयु में गुरुदेव अपने पके हुए केशों के साथ किसी पैगंबर की तरह ही दिखते थे। पार्थिव जगत के बंधन कमजोर होगये थे। वे हमारे बीच होने पर भी हममें से एक नहीं थे।...राजशाही लौटने पर मेरे बूढ़े मुसलमान चौकीदार ने पकड़ा। ‘‘हुजूर बहादुर कहां गये थे।’’
‘‘मैंने बता दिया। नहीं जानता था कि वह रवीन्द्रनाथ को जानेगा।...शफी चौकीदार ने शिकायत करते हुए कहा, ‘‘अरे, ठाकुरबाबू आये थें। हमको क्यों नहीं लेगये हुजूर? कितने दिन होगये उनको देखे। देख आता।’’
‘‘तुमने उनको देखा है?...कब?’’
‘’ वोऽ, जब राजशाही आये थे। पालित साहब यहां के जज साहब थे। जज साहब की कोठी में रहे। आहा, ठाकुर बाबू क्या सुंदर मनुष्य थे! कितना सुंदर गाते थे। मुझे अभी भी याद है।’’ वह अतीत में खो गया।
‘‘मैंने हिसाब लगा कर देखा, वह चौवालीस साल पहले की बात कह रहा था। कवि की उम्र तब बत्तीस साल की थी।... बाद में शांतिनिकेतन में गुरुदेव को बताया । उन्होंने करुण भाव से कहा, ‘‘तब गाने का गला था।’’

मोनोग्राफ के इसी अध्याय ‘नया पड़ाव’ में हरीश जी के गीतों पर जो लिखा गया, उसके भी एक छोटे से अंश को यहां देना चाहूंगा। शायद गीत विधा पर गीत चुतुर्वेदी की बातों को उनसे कुछ बल मिले। यहां 1966 में प्रकाशित उनके गीतों के नये संकलन ‘एक उजली नजर की सुई’ का प्रसंग है। मोनोग्राफ में लिखा गया है -

“एक उजली नजर की सुई  में इस दौर में गृहीत अनूठे महानगरीय बिंबों के कई अमर गीत संकलित है। कोलकाता और मुंबई में बैठ कर लिखे गये ये गीत सघन और जटिल महानगरीय बोध के साथ नये, बेहतर और मानवीय समाज के निर्माण की बेचैनी के गीत है। ये सन् साठ के बाद के गीत है। गीत क्या, बेहद सघन बिंबों की कविताएं जिन्हें हरीश भादानी गाकर और भी गाढ़ा बना देते थे। सुव्यवस्थित ध्वनियों के साथ आधुनिक, जटिल भाव, विभाव, अनुभाव की रस-निष्पत्ति। सोने पर सुहागा। संगीत, लय और धुनों, रागों पर अधिष्ठित सार्थक शब्दों की मूच्र्छना और भावों की गहनता। फिर चित्त के विस्तार का एक अलग ही प्रभाव क्यों न दिखाई दे!

“हरीश भादानी अपने इन गीतों की व्यंजना के साथ जहां भी होते, उनके ऐश्वर्य का अपना ही वलय होता। वे साहित्य-रसिकों, साहित्यकारों या यहां तक कि कोरे कवि सम्मेलनों के भी कवि नहीं थे। वे जहां होते, पूरा परिवार, घरों की औरतें और बच्चे भी उनके साथ होते, उनके साथ स्वर मिला कर गाते होते। राजस्थान सहित देश के अनेक क्षेत्रों में ऐसे असंख्य परिवार हैं, जिनकी बेटियां-बहुएं आज भी हरीश भादानी के गीतों को गुनगुना कर स्वयं को परितृप्त करती हैं। इसमें शक नहीं, नाद उनके इस व्यक्तित्व का एक मूल आधार था। कहते हैं, भाषा भाषा मर्मज्ञों को रिझाती है, लेकिन गीत, जिसे महर्षि भरत ने नाट्य की शय्या कहा है, शिशुओं को भी खींच लेते हैं। यही तो है जो कवि को पैगंबर बना देता है।96 तुलसी-सूर-कबीर के इतने प्रसारित अनुभवों के बाद भी आधुनिक हिंदी साहित्य जगत गीतों की इस अनोखी शक्ति से आज जैसे लगभग अपरिचित सा दिखाई देता है। औसत प्रतिभाओं के समय के औसत साहित्यगुरुओं की मार और हिंदी कविता पर अधकचरेपन का अभावनीय वर्चस्व! बांग्ला में आज भी इसीलिये ‘रवीन्द्र-उत्तर’ कुछ भी क्यों न बना हो, बार-बार घूम-फिर कर शब्दों के नाद के लिये भी उसे रवीन्द्रनाथ के शरणागत होते देखा जा सकता है।
 
“हरीश भादानी ने संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी। लेकिन जानकार उनमें अनायास ही अनेक रागों के आधार को बताते हैं। राग - जिन्हें भरत इत्यादि मुनियों ने तीनों लोकों में विद्यमान प्राणियों के हृदय के रंजन का हेतु माना है। आरोहो-अवरोहों की विलंबित रागों पर अधिष्ठित इन गीतों के सघन और विस्तृत बिंब गीत और कविता के बीच श्रेष्ठता की बहस को बेमानी कर देने के लिये काफी है। शायद इन्हें ही सुन कर अज्ञेय जी ने बीकानेर में सुरों में बंधी कविता को सुनने के अपने अभिनव अनुभव का जिक्र किया होगा!”

समालोचन ब्लागस्पाट का लिंक –

https://samalochan.blogspot.in/2016/10/blog-post_15.html



बॉब को साहित्य का नोबेल घोषित किये जाने के ठीक बाद हमने अपनी वाल पर जो पोस्ट लगाई थी, उसे भी हम यहां दे रहे है -

^^ बॉब डिलेन को नोबेल पुरस्कार
अभी-अभी हम बीकानेर से हरीश भादानी समग्र के लोकार्पण समारोह से कोलकाता लौटे हैं । हरीश जी के गीतों और धुनों से सरोबार इस समारोह की ख़ुमारी अभी दूर भी नहीं हुई कि आज यह सुखद समाचार मिला - अमेरिकी गीतकार और गायक बॉब डिलेन को इस साल का साहित्य का नोबेल पुरस्कार घोषित किया गया है । शायद रवीन्द्रनाथ के बाद यह दूसरा गीतकार है जिसे उसके गीतों के लिये नोबेल दिया जा रहा है ।

बॉब डिलेन अमेरिका के पॉप संगीत के एक ऐसे अमर गीतकार और गायक रहे हैं जिनके छ: सौ से अधिक गीतों ने अमेरिका की कई पीढ़ियों को मनुष्यता और प्रतिवाद की नई संवेदना से समृद्ध किया है ।
यहाँ हम उनके एक प्रसिद्ध गीत - Blowin' In The Wind को मित्रों से साझा कर रहे हैं और साथ ही तुरत-फुरत किये गये उसके एक हिंदी अनुवाद को भी दे रहे हैं –

Blowin' In The Wind Lyrics
How many roads must a man walk down
Before you call him a man ?
How many seas must a white dove sail
Before she sleeps in the sand ?
Yes, how many times must the cannon balls fly
Before they're forever banned ?
The answer my friend is blowin' in the wind
The answer is blowin' in the wind.

Yes, how many years can a mountain exist
Before it's washed to the sea ?
Yes, how many years can some people exist
Before they're allowed to be free ?
Yes, how many times can a man turn his head
Pretending he just doesn't see ?
The answer my friend is blowin' in the wind
The answer is blowin' in the wind.

Yes, how many times must a man look up
Before he can see the sky ?
Yes, how many ears must one man have
Before he can hear people cry ?
Yes, how many deaths will it take till he knows
That too many people have died ?
The answer my friend is blowin' in the wind
The answer is blowin' in the wind


कितने रास्ते तय करे आदमी
कि तुम उसे इंसान कह सको ?
कितने समंदर पार करे एक सफ़ेद कबूतर
कि वह रेत पर सो सके ?
हाँ, कितने गोले दागे तोप
कि उनपर हमेशा के लिए पाबंदी लग जाए?
मेरे दोस्त, इनका जवाब हवा में उड़ रहा है
जवाब हवा में उड़ रहा है ।

हाँ, कितने साल क़ायम रहे एक पहाड़
कि उसके पहले समंदर उसे डुबा न दे ?
हाँ, कितने साल ज़िंदा रह सकते हैं कुछ लोग
कि उसके पहले उन्हें आज़ाद किया जा सके?
हाँ, कितनी बार अपना सिर घुमा सकता है एक आदमी
यह दिखाने कि उसने कुछ देखा ही नहीं ?
मेरे दोस्त, इनका जवाब हवा में उड़ रहा है
जवाब हवा में उड़ रहा है ।

हाँ, कितनी बार एक आदमी ऊपर की ओर देखे
कि वह आसमान को देख सके?
हाँ, कितने कान हो एक आदमी के
कि वह लोगों की रुलाई को सुन सके?
हाँ, कितनी मौतें होनी होगी कि वह जान सके
कि काफी ज्यादा लोग मर चुके हैं ?
मेरे दोस्त, इनका जवाब हवा में उड़ रहा है
जवाब हवा में उड़ रहा है।

यहाँ डिलेन के इस गीत को उसके सुर में भी हम साझा कर रहे हैं –

http://musicpleer.cc/#!8f33f70c1aee27333e3fd3cdaeff9d3a






 



 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें