शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

क्या मोदी सरकार राष्ट्र के पूर्ण विध्वंस की सरकार साबित होगी !

-अरुण माहेश्वरी

CLOSE DOWN COURTS: SC
SHUT DOWN, ACTUALLY

क्या सचमुच वह समय आरहा है जब हमें हैरोल्ड लॉस्की की राज्य और राजनीति के कखग को बताने वाली बुनियादी पुस्तक ‘‘राजनीति का व्याकरण’’ को फिर से पढ़ने की जरूरत है ; यह जानने की जरूरत है कि सामाजिक संगठन का, राज्य के निर्माण का उद्देश्य क्या होता है; क्यों किसी भी जन-समुदाय को सरकार नामक चीज की जरूरत होती है ; जनतंत्र में जब सत्ता आम लोगों में निहित मानी जाती है, तब राजसत्ता के संचालन का क्या तात्पर्य होता है, ताकि सत्ता उस जनता के पास बनी रहे जिसके बहुसंख्यक हिस्से में राजसत्ता के संचालन के रहस्य को जानने की न तो फुर्सत रहती है और न ही इच्छा ; आधुनिक राज्य-तंत्र का क्या मायने है और इसके सफलतापूर्वक संचालन के लिये क्यों एक अलग प्रकार की विशेषज्ञता की जरूरत होती है ?

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने कल भारत सरकार को लगभग अभियुक्त के कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि आप जिस तरह से न्यायाधीशों की नियुक्तियों को रोके हुए है ‘‘उसी तरह आप न्यायालयों को भी बंद कर सकते हैं’’। (You can as well close down the courts) ।

मुख्य न्यायाधीश ने न्यायालय को बताया कि कर्नाटक हाईकोर्ट के एक पूरे तल्ले पर सिर्फ इसलिये ताला लगा देना पड़ा है क्योंकि उसमें बैठने के लिये न्यायाधीश नहीं है। ‘‘पहले न्यायाधीश होते थे, लेकिन अदालतों में जगह नहीं होती थी, आज हमारे पास जगह है लेकिन उसमें बैठने के लिये न्यायाधीश नहीं है।’’

न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम ने इस साल के फरवरी महीने तक 311 जजों की नियुक्ति की सिफारिश की है जिनमें मोदी सरकार ने अब तक सिर्फ लगभग 80 जजों की नियुक्ति की है। बाकी नियुक्तियों को बिल्कुल निराधार और झूठी दलीलों के आधार पर लटका कर रख दिया गया है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश ने भारत के अटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी को बुरी तरह से फटकारते हुए कहा कि रोजाना किसी न किसी नये बहाने के साथ उपस्थित हो जाते हैं। आठ जजों के कॉलेजियम ने सरकार को इस बात की अनुमति दे दी थी कि वह चाहे तो नियुक्तियों की पद्धति का एक ज्ञापन (Memorandum of procedure) तैयार कर सकती है, लेकिन इसके बहाने नियुक्तियों को अनंत काल तक लटकाये रखने का कोई तुक नहीं है। इसीलिये मुख्य न्यायाधीश ने कहा, आप इस बारे में अपनी नीति को तय नहीं कर पा रहे है तो यह आपकी समस्या है। उसका नियुक्तियों को रोकने के लिये इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

मुख्य न्यायाधीश ने यहां तक धमकी दी कि यदि यह गतिरोध इसीप्रकार बना रहता है तो सर्वोच्च न्यायालय इस सरकार को न्यायालय की अवमानना का अपराधी बताते हुए कोई ऐसा आदेश पारित करने के लिये मजबूर हो जायेगी, जैसा आज तक नहीं हुआ है। आगामी 7 नवंबर को सर्वोच्च अदालत में इस मामले की आगे और सुनवाई होगी।

पिछले दिनों हमने विदेश नीति के क्षेत्र में इस सरकार की चरम विफलताओं पर गौर किया था। भारत को इसराइल की तरह की एक क्षेत्रीय आक्रामक सामरिक शक्ति बनाने के चक्कर में इसने हमारी विदेश नीति को पूरी तरह से दिशाहीन बना कर छोड़ दिया है। आज के वैश्वीकरण के युग में कूटनीति का सीधा संबंध अर्थनीति से होता है। जिस समय दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में पड़ौसियों के साथ मुक्त व्यापार की संधियां (एफटीए) की जा रही है, उस समय भारत सरकार की थोथी आक्रामकता हमारे देश को अपने में बंद, अलग-थलग, प्राय: एक दुर्गम क्षेत्र का रूप दे रही है। यहां तक कि इस पूरे उपमहाद्वीप के आम लोगों के बीच आपसी वैमनस्य को बढ़ाने की सुनियोजित कोशिशों में भी इस सरकार का सीधा हाथ दिखाई देता है।

इसीप्रकार, घरेलू आर्थिक नीतियों के मामले में भी, देश के संघीय ढांचे के प्रति इस सरकार की बुनियादी अनास्था ने जीएसटी सहित हर प्रकार के आर्थिक सुधारों को या तो अधर में लटका कर रख दिया है या अमल में लाने के पहले ही इतना विकृत कर दिया है कि उद्देश्यों की बात तो जाने दीजिये, उसकी मूलभूत सूरत को पहचानना तक मुश्किल हो जाए। जीएसटी के विकृतिकरण के ही बारे में जो सारी सूचनाएं आ रही है, उसे यदि इस रूप में लागू किया गया तो यह किसी प्रकार की सहूलियत के बजाय, भारत के लोगों के लिये एक नया जी का जंजाल बनने वाला है।

इन सब, दिशाहीनता, निर्णयहीनता और आरएसएस की तरह के एक ाड़यंत्रकारी पुरातनपंथी संगठन में निर्मित ग्रंथियों की जड़ताओं का ही फल है कि विश्व बैंक के ताजा आकलन में व्यापार करने में सहूलियत के सूचकांक में दुनिया के 190 देशों में भारत का स्थान आज भी पहले की तरह ही 130वां बना हुआ है। इस दौरान पाकिस्तान और बांग्लादेश तक की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन भारत जस का तस, अपने दलदल में गहरे तक धसा हुआ है। सभी जानते हैं कि व्यापार करने में सहूलियत का सूचकांक प्रकारांतर से भ्रष्टाचार की स्थिति का भी एक सूचकांक होता है। लाल फीताशाही, व्यापार में बाधाएं हमेशा भ्रष्टाचार के मूल में रहती है।

इसका अर्थ है - मोदी राज अंतत: भारत का एक सबसे भ्रष्ट राज का खिताब भी हासिल करने जा रहा है।
और जहां तक कानून और व्यवस्था का सवाल है - इस सरकार ने गोगुंडा नामक सामाजिक और आर्थिक अपराधियों के एक सबसे बड़े गिरोह को बाकायदा सरकारी मान्यताएं देकर पूरे राष्ट्र को इन गिरोहों की गिरफ्त में ले आने के आरएसएस के सांप्रदायिक और जातिवादी कार्यक्रम पर अमल का सिलसिला शुरू कर दिया है। यह अपने आप में शायद दुनिया के एक सबसे ताकतवर माफिया गिरोह की उत्पत्ति का सरकारी उपक्रम होगा !

इस प्रकार, कुल मिला कर,  विदेश नीति, अर्थनीति, भ्रष्टाचार, और कानून और व्यवस्था के बाद यहां तक कि न्याय के क्षेत्र में भी यह सरकार जिस दिशा में बढ़ रही है, उसका गंतव्य पूरी तरह से एक जंगल राज से भिन्न नहीं हो सकता है। दर्शनशास्त्र का एक बुनियादी नियम है कि हर चीज अंतिम समय तक अपने अव्यक्त बीज-तत्व (सत्व) को ही व्यक्त करती है, अर्थात उसकी नियति किसी प्रारब्ध की तरह उसकी उत्पत्ति के वक्त ही तय हो जाती है। फिर भी, जीवंत जैविक संरचनाओं में तो जड़ पदार्थों की तुलना में परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तन की ज्यादा संभावनाएं रहती है, लेकिन तत्ववादियों के लिये ऐसी सभी संभावनाओं के द्वार बंद रहते हैं। मनुष्य समाज के लिये सबसे बड़ी मुसीबत तब होती है, जब ऐसी आत्म-विनाशकारी तत्ववादी ताकतें मनुष्यों के बीच से भौतिक शक्ति का रूप लेकर पूरे समाज की नियति को प्रभावित करने लगती है। भारत में आरएसएस के सांप्रदायिक फासीवादी उद्देश्यों से परिचालित यह मोदी सरकार राष्ट्र के लिये वैसे ही दुखदायी विध्वंस का हेतु बनती दिखाई देने लगी है।

और इसीलिये, बिल्कुल सही, हमें आज हैरोल्ड लॉस्की और राज्य तथा राजनीति के उद्देश्यों की उनकी मूलभूत शिक्षाओं को दोहराने की जरूरत महसूस होने लगी है।

हम यहां आज के ‘टेलिग्राफ’ की पहली खबर ‘सरकार पर न्यायाधीश का ज्वालामुखी फटा’ (Judge volcano erupts on govt) को मित्रों के साथ साझा कर रहे हैं –

http://www.telegraphindia.com/1161029/jsp/frontpage/story_116340.jsp#.WBRwI7Ake7Y

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