शनिवार, 10 सितंबर 2016

बार बार देखो और 'वर्तमानता' ‘वर्तमानता’ में फर्क



-अरुण माहेश्वरी

आज एक फिल्म देखी - ‘बार बार देखो’।

जय (सिद्धार्थ मल्होत्रा) और दिया (कैटरिना कैफ), एक प्रेमी युगल के सुखी जीवन की कहानी। जय एक प्रतिभाशाली गणितज्ञ होने के नाते अपनी तर्कशक्ति से जीवन के दूरगामी समीकरणों को देखता रहता है। इसी के चलते अपने वैवाहिक जीवन के एक-एक पड़ाव पर आने वाले संभावित गतिरोधों के दुष्परिणामों की आशंकाओं से घिरा हुआ, पसीना-पसीना होता रहता है। बिल्कुल किर्केगार्द के अस्तित्वीय संकट की तरह आगत साठ सालों को लेकर उसकी आशंकाएं मूर्त हो कर दर्शकों को पर्दे पर दिखाई देती हैं, और दूसरे ही पल वह फिर उसी तक लौट कर उसे एक नये समीकरण को तैयार करने में उतार देती है। दु:स्वप्नों की तरह न जाने कैसे-कैसे संदेह पैदा होते हैं और गुम हो जाते हैं। न उनके उत्स का पता होता है और न ही गंतव्य का।

अंत में नायक एक ही नतीजे पर पहुंचता है कि भविष्य की चिंता छोड़ों और वर्तमान में रहो। टाइम मशीन पर चढ़ कर भविष्य की ओर दौड़ने की गति बेहद हिंसक होती है; सोच कर चलना उबाऊ और थकान भरा होता है। यहां तक कि निश्चेष्ट बने रहने या उठ खड़े होने के बारे में भी वह सोचेगा नहीं। किर्केगार्द कहता है कि ‘‘सब जानते हैं कि ऐसे भी कीड़ें होते हैं जो जन्म के साथ ही मर जाते हैं। इसीलिये मृत्यु के साथ ही खुशी और आनंद का सबसे विलासितपूर्ण क्षण जुड़ा होता है।’’ इसीलिये जीवन को लेकर इतना क्यों सोचना ! जय को गणित के समीकरणों में हमेशा संतुलन बना कर चलने की तरह सिर्फ अपने वैवाहिक जीवन के सुख और शांति को हमेशा बनाये रखना है।

कुल मिला कर यही है इस फिल्म का मूल कथानक।

अभी चंद दिनों पहले ही हमने ‘मोदी जी की वर्तमानता’ की तीखी आलोचना की थी। सवाल है कि क्या इस फिल्म के नायक की सुख और शांति के संतुलन को बनाये रखने की वर्तमानता और मोदी जी की ‘वर्तमानता’ एक है ? मोदी जी की वर्तमानता तो उनके शासन की, गोरक्षकों और संघ के स्वयंसेवकों के दौरात्म्य की वर्तमानता है। फिल्म के नायक जय का लक्ष्य है अपने जीवन को बिखरने नहीं देना। और मोदी जी, जब अपनी बिना किसी लक्ष्य वाली ‘वर्तमानता’ की बात करते हैं, तब वे भारत को एक स्थायी सांप्रदायिक कलह में डाल देने के अपने लक्ष्य पर सिर्फ पर्दादारी कर रहे होते हैंं। इसीलिये वे अपने लक्ष्य को कभी साफ नहीं करते, बल्कि उसे छिपाते हैं।

इसीलिये ‘बार बार देखो’ के नायक के वर्तमान को जीने का दर्शन और मोदी जी की ‘वर्तमानता’ दो विपरीत ध्रुव है।  

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