सोमवार, 19 सितंबर 2016

पागलों की या अपराधियों की मजलिस !


आज अर्नब की मजलिस खूब जमी हुई लग रही थी। भारतीय टेलिविजन में यह एक ऐसी मजलिस होती है जिसमें शामिल होने वाला हर शख्स लगता है जैसे अपने जीवन के सामान्य व्यवहार को भूल कर भारी उन्माद की दशा में पहुंच जाता है। महानगरों के बड़े-बड़े काम्प्लेक्सों और सबसे कुलीन इलाकों के इन निवासियों को उनके पड़ौस के लोग जितने सभ्य रूप में देखने के अभ्यस्त होते हैं, वे निश्चित तौर पर इस चैनल पर इनके चीखते-चिल्लाते व्यवहार से अचंभित हो जाते होंगे !

सचमुच, भारत-पाकिस्तान के बीच थोड़ा भी तनाव हो तो इस अर्नब चैनल पर पूरा युद्ध शुरू हो जाता है। अगर कोई कहे कि कौरवों और पांडवों के बीच हुए विध्वंसक युद्ध की एक ही उपलब्धि रही कि व्यास ने महाभारत जैसा एपिक लिख दिया, तो हम कहेंगे कि भारत-पाकिस्तान के बीच के राजनयिक-फौजी तनावों की शायद यही एक उपलब्धि होती है कि अर्नब के उन्मादितों की मजलिस खूब जम जाती है।

लेकिन, हमारी चिंता इसके विलोम की प्रक्रिया को लेकर है। अगर युद्ध से कोई ‘महाभारत’ लिखा जा सकता है, तो क्या संभव नहीं कि कुछ लोगों को ‘महाभारत’ से किसी युद्ध की प्रेरणा  भी मिल सकती है ? अर्नब की पागलों की मजलिस यदि कश्मीर की स्थिति और भारत-पाक तनावों की उपज है, तो क्या इस मजलिस की उपज कश्मीर की स्थिति और भारत-पाक तनाव नहीं हो सकते हैं ?

इसीलिये पागलों की यह मजलिस कभी-कभी हमें अपराधियों की मजलिस भी प्रतीत होने लगती है।

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