शनिवार, 22 मार्च 2014

कचरा और मोदी

आज तमाम पार्टियों का कचरा जिसप्रकार भाजपा में आकर जमा हो रहा है, इस उत्तर-आधुनिक युग की एक बड़ी लाक्षणिकता की ओर संकेत करता है।

इस युग के उद्योग का सबसे बड़ा उत्पाद है - कचरा। एक दिन पहले की हमारी प्रिय चीज अगले दिन ही कचरे में बदल जाती है। टेप को सीडी ने कचरा बनाया तो सीडी को डीवीडी ने और आज सब कुछ पेनड्राइव में सिमट रहा है। घर-घर में वीसीआर का कूड़ा जमा है। स्मार्ट फोन और टैबलेट लैप टाप और पीसी को कूड़ा बना दे रहे हैं।

हम उत्तर-आधुनिक प्राणी जानते हैं कि हमारे भोग की कई सुंदर कलाकृतियां भी अन्तत: कूड़े का ढेर बनने वाली है। पूरी धरती एक विशाल कूड़ा-घर।

आदमी का दुखांत (tragedy) बोध खत्म हो जायेगा और प्रगति उसका मूंह चिढ़ायेगी। मार्क्स के शब्दों में - ‘‘जो कुछ भी ठोस है, वह हवा में उड़ जाता है, जो कुछ पावन है, वह भ्रष्ट हो जाता है।’’

और, इसी बिन्दु पर सब कुछ निपट नंगे, अपने दिगंबरी रूप में दिखाई देने लगता है।

नरेन्द्र मोदी रूप में!

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