शुक्रवार, 14 मार्च 2014

भ्रष्टाचार के ताने-बाने में मीडिया

भारत में भ्रष्टाचार के पूरे ताने-बाने में मीडिया नामक तत्व को शामिल किये बिना इसकी कोई मुकम्मल तस्वीर नहीं बन सकती थी । अरविंद केजरीवाल ने इस प्रसंग को उठा कर इस कमी की पूर्ति की है ।

राजनीति और जीवन के दूसरे क्षेत्रों के भ्रष्ट तत्वों को जेल में डालने की लफ़्फ़ाज़ियों पर इतराने वाला मीडिया का एक तबक़ा भ्रष्ट मीडिया के लोगों को दंडित करने की बात पर जिस प्रकार भड़का है, वह इसकी दाढ़ी में तिनके के अलावा और कुछ नहीं दर्शाता ।

चंद दिनों पहले ही जिंदल समूह ने ऐसे एक मीडिया समूह के उच्च अधिकारियों को ब्लैक मेलिंग करते हुए रंगे हाथों पकड़ाया था । वही समूह आज गला फाड़ कर 'मोदी कीर्तन' और 'आप निंदा' में लगा हुआ है ।

जिन लोगों को भ्रम हैं कि दुनिया ऐसे कारपोरेट मीडिया की दया पर ज़िंदा है, वे आज के तकनीकी परिदृश्य से पूरी तरह अपरिचित हैं । इंटरनेट ने कारपोरेट मीडिया को ठुकरा कर लाखों-करोड़ों लोगों से एक साथ सीधे संपर्क के और भी कई रास्तें खोल दिये हैं । सोशल मीडिया अपने संवादमूलक चरित्र के कारण पढ़े-लिखें आम जनों के लिये कहीं ज्यादा अंतरंग और प्रभावी भी है । इसके बढ़ते दायरे ने मीडिया व्यवसाय के अस्तित्व को झकझोरा है । कम से कम, जनमत तैयार करने में इस कारपोरेट मीडिया की इजारेदारी के दिन लदते जा रहे हैं । 'आप' ने अपने विस्तार में इस संवादमूलक मीडिया का विवेक-सम्मत इस्तेमाल किया है ।

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