मोहन भागवत जी ने कहा है कि हिंसा से गोरक्षा का कार्य बदनाम हो रहा है ।
उन्होंने एक शब्द उन पशुपालक पहलू खां की हत्या की निंदा और शोक में नहीं कहा जिन्हें पिछले शनिवार को अलवर में गो गुंडों ने पीट-पीट कर मार डाला था ।
न मोहन भागवत के पास तलवारें चमकाते लोगों के उन हुजूमों की निंदा में एक शब्द है जो रामनवमी के दिन देश के विभिन्न भागों में सड़कों पर उतर कर 'शौर्य प्रदर्शन' के नाम पर आतंक का माहौल बनाये हुए थे ।
क्या भागवत नहीं जानते कि हत्या और नफरत की ऐसी प्रत्येक घटना इनके ख़ुद के शासन के साथ एक स्थायी कलंक बन कर हमेशा चिपकी रहेगी ? इनकी पहचान किसी रचनात्मक काम से नहीं, ऐसी बर्बरताओं से ही होगी ! इनका 'हिंदू राष्ट्र' किसी भी स्वस्थ दिमाग़ के नागरिक के लिये सिर्फ एक वितृष्णा पैदा करेगा !
थोथी बातों का अंत हमेशा इसी प्रकार के अवांछित परिणामों के रूप में होता है । भागवत-मोदी-शाह हमें तो इतिहास के कूड़ेदान के सबसे दुर्गंधपूर्ण कोने में सड़ते हुए दिखाई देने लगे हैं ।
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