शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

योगी और कैकयी का मनोरथ

-अरुण माहेश्वरी


सत्ता पाते ही योगी आदित्यनाथ ने जनतंत्र के राजा जनता जनार्दन को अपना कैकयी रूप दिखाना शुरू कर दिया है। उन्हें उत्तरप्रदेश नहीं, ‘हिंदू राष्ट्र’ चाहिए !

मानस में कैकयी दशरथ से कितने प्रेम से कहती है -

सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का । देहु एक बार भरतहि टीका ।।
मानउ दूसर बर कर जोरी । पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी ।।

तापस बेस बिसेषि उदासी । चैदह बरिस राम बनबासी ।।

इसपर तुलसी लिखते हैं -

सुनि मृदु बचन भूप हियँ सोकू । ससि कर छुअत बिकल जिस कोकू ।।

और फिर दशरथ कहते हैं -
अवध उजारि कीन्हीं कैकेईं । दिन्हिस अचल बिपति कै नेईं ।।

(हे प्राणप्रिय मन चाहता है कि भरत का राजतिलक हो। और दूसरा मनोरथ है कि राम को साधू के वेष में वन में भेज दो। तुलसी कहते हैं कि कैकयी के इन कोमल वचनों को सुन कर राजा का मन इतना दुखी हुआ जैसे चांद की किरणों के स्पर्श से चकवा विकल हो जाता है। दशरथ कहते हैं - ‘‘कैकयी ने अयोध्या को उजाड़ दिया और विपत्ति की सुदृढ़ नींव रख दी। )

कैकयी के मृदु वचनों से ठगे रह गये दशरथ ने जब अपनी दुविधा व्यक्त करनी शुरू की तो कैकयी किस कर्कशा और रौद्र रूप में सामने आती है, इसका चित्रण भी तुलसी ने किया है।

योगी अभी तो प्रेम से बातें कर रहे हैं। दूसरी ओर देश के कोने-कोने में तलवारें चमकाती उनकी हिंदू युवा वाहिनी के प्रदर्शन उनके परवर्ती रौद्र रूप के सारे संकेत दे रहे हैं।

आज भाजपा के लोगों में क्रमशः जाग रहा शस्त्र-प्रेम यह बताने के लिये काफी है कि ये इस भारत देश को वनवास की सजा सुना कर, अर्थात जंगली बना कर ही मानेंगे। मीडिया के अंजना ओमकश्यप की तरह के एंकर इसी जंगल राज के भोपूं की भूमिका में उतरे हुए हैं।

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