शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

परमानंद की भाव-दशा में खुला तरुण विजय के अंतर का सच (‘We live with blacks (south Indians), can’t be racist’)


-अरुण माहेश्वरी


 (Ex-BJP MP Tarun Vijay’s insight: ‘We live with blacks (south Indians), can’t be racist’ - Indian Express)

आल्फ्रेड हिचकौक की डरावनी और रोमांचक फिल्मों का एक प्रमुख सिद्धांत है कि खलनायक जितना जबर्दस्त होगा, फिल्म से मिलने वाला आनंद उतना ही प्रबल होगा।

आज के मोदी-शाह के डरावने और रोमांचक गोगुंडों, रोमियो स्कैव्यैड और तलवारे चमकाते हुजूमों के गुंडा राज के आनंदपूर्ण कथानक को भाजपा के पूर्व सांसद और आरएसएस के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ के पूर्व संपादक तरुण विजय ने सचमुच एक नई और चरम ऊंचाई प्रदान कर दी है। कल तक संघ वाले सिर्फ मुसलमानों और दलितों को खलनायक बताते थे। अब उसमें उन्होंने पूरे दक्षिण भारत के लगभग 25 करोड़ लोगों को और जोड़ दिया है। खास तौर पर तमिलनाडु के सात करोड़ द्रविड़ों को सीधे तौर पर।

उन्होंने इन सब तबकों को दुनिया के उन अश्वेत (काले) लोगों की श्रेणी में रख दिया है, जिनके प्रति गोरे लोगों में रंगभेद और नस्लभेद की भावनाएं पाई जाती है। उन्होंने कहा है कि ‘भारत में भी काले लोग हैं, लेकिन हम तो उनसे नफरत नहीं करते, हममें रंगभेद नहीं है !’

भारत का प्राचीन इतिहास द्रविड़ों को ही इस भूमि का मूल निवासी मानता हैं और हिटलर के आदर्शों से प्रेरित आरएसएस के तरुण विजय जिस हिंदू पादशाही की स्थापना के नाम पर ‘आर्यामी’ का झंडा गाड़ने की घुट्टी लेकर पले-बढ़े हैं, वे तो इस देश में बाहर से आए ‘आक्रमणकारी’ हैं। हांलाकि इन दिनों इतिहास को तोड़-मरोड़ कर वे भारत को आर्यों की मूल भूमि भी बताने लगे हैं !

बहरहाल, अब सचमुच तरुण विजय ने भारत को लेकर अपनी हिचकौक वाली डर और रोमांच से भरी कल्पना के आनंद को उसके चरम पर पहुंचा दिया है। इस कथा के खलनायक ने सचमुच विशालकाय रूप ग्रहण कर लिया है। 25 करोड़ दक्षिण भारतवासी, 17 करोड़ मुसलमान और अनुसूचित जातियों जनजातियों के लगभग 30 करोड़ और पिछड़ी जातियों के 50 करोड़ लोग (इनमें दक्षिण भारत के लोगों को पहले ही गिन लिया गया है)। बाकी रह जाते हैं बचे-खुचे पांच-सात करोड़ ब्राह्मण, पादशाही की राजगद्दी पर बैठने के अधिकारी, उनकी पटकथा के नायक ! इतने भारी-भरकम खलनायक पर एक क्षीणकाय नायक की विजय की कहानी - तभी तो कहानी का आनंद अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचेगा !

तरुण विजय ने परमानंद की अपनी इसी आत्म-मुग्ध अवस्था में अपने और पूरे संघ परिवार के अंतर को खोल कर रख दिया है। इसके लिये वे अशेष धन्यवाद के पात्र है।

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