शनिवार, 6 मई 2017

कार्ल मार्क्स : जिसके पास अपनी एक किताब है (4)


-अरुण माहेश्वरी


जैकोबिन गणतंत्र

यदि ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति ने यूरोप की अर्थ-व्यवस्था को एक नया रूप दिया तो उसकी राजनीति और विचारधारा का निर्माण फ्रांस में हुआ था। फ्रांसीसी क्रांति से ही सारी दुनिया की उदार और क्रांतिकारी जनतांत्रिक राजनीति को अपनी भाषा और मुद्दे भी मिलें। क्रांति के प्रारंभ के साथ ही संविधान सभा की बहस में उदारपंथी और क्रांतिकारी जोशो-खरोश के प्रतीक जैकोबिन (अर्थात पर्वत) गणतंत्रवादियों के बीच जो विचारधारात्मक तनाव सामने आया, उसी का फल था कि क्रांति के दूसरे साल, 1791 में वहां जैकोबिन गणतंत्र की स्थापना हो गई। एरिक हाब्सवाम की किताब ‘Age of Revolution’ में इस काल के यूरोप के इतिहास के विस्तृत ब्यौरे को देखा जा सकता है।



जैकोबिन गणतंत्र के चौदह महीनों के काल में ही फ्रांस के पूरे राज परिवार सहित लगभग 17 हजार सरकारी अधिकारियों की गर्दने गिलोटीन की गई थी। फ्रांसीसी क्रांति के इस काल के आतंक को आज तक दुनिया की दक्षिणपंथी ताकतें भूल नहीं पाई है। 1989 में जब सारी दुनिया में धूम-धाम से फ्रांसीसी क्रांति की द्विशताब्दी मनाई जा रही थी, ब्रिटेन की तत्कालीन कंजर्वेटिव प्रधानमंत्री माग्र्रेट थैचर जैकोबिन गणतंत्र के उन दिनों की याद करके उस क्रांति की भर्त्सना करने से नहीं चूकी थी।

जैकोबिन गणतंत्र में सम्राट पर मुकदमे का दृश्य

बहरहाल, फ्रांसीसी क्रांति के दौरान उदारवादियों और गणतंत्रवादियों के बीच तनाव के कई मुद्दों में एक बड़ा मुद्दा यहूदियों के बारे में था। 1789 के ‘मनुष्य के अधिकारों की घोषणा’ में कहा गया था कि मनुष्य जन्म से ही स्वतंत्र थे और हैं, और सभी मनुष्यों के अधिकार एक समान हैं। इसके अलावा यह भी कहा गया था कि किसी भी व्यक्ति को उसके विचारों की बदौलत, भले उसके धार्मिक विचारों की बदौलत ही क्यों न हो, तब तक कभी परेशान नहीं किया जायेगा, जब तक उसके विचारों की अभिव्यक्ति से कानून के द्वारा स्थापित सार्वजनिक व्यवस्था में कोई खलल न पड़ता हो।


‘मनुष्य के अधिकारों की घोषणा’ के बिनाह पर ही 27 सितंबर 1791 के दिन यहूदियों को भी, जिनसे फ्रांस के कैथोलिक धर्मावलंबी बहुत नफरत करते थे, अन्य फ्रांसीसी नागरिकों की बराबरी में सारे अधिकार प्रदान किये गये। यहूदियों के बारे में कैथोलिकों का कहना था कि चूंकि वे ईश्वर की शान के साक्षी थे और पारंपरिक चर्च के इतिहास में शामिल थे, इसीलिये उन्हें संरक्षण तो दिया जाना चाहिए, लेकिन चूंकि वे ईश्वर के क्रोध के पात्र बने थे, इसलिये या तो उन्हें दोयम अवस्था में रखा जाना चाहिए, या उनका धर्म-परिवर्तन करा देना चाहिए।


यहूदियों से नफरत करने वालों में उस काल के प्रमुख दार्शनिक वाल्तेयर, दिदेरो, जोकोर, दोलबैक आदि भी शामिल थे। वे यहूदियों को अरुचिकर अंधविश्वासों से ग्रस्त जघन्य लोभ का पुंज मानते थे। (देखें, Gareth Stedman Jones की किताब “Karl Marx, Greatness and Illusion” ; पृष्ठ - 12,13)

लेकिन क्रांति के विकास के साथ-साथ जो लोग अनपढ़ उत्पीड़ित जनों को सत्ता सौंप दिये जाने में सामाजिक अराजकता का खतरा देख रहे थे, उनकी आवाज लगातार कमजोर पड़ती चली गई। क्रांति की कैथोलिक चर्च से भी शत्रुता बढ़ गई। चर्च ने राज परिवार को देश से पलायन करने में मदद करने की कोशिश की थी जो विफल रही। जैकोबिन गणतंत्र की नागरिकों की सेना ने जर्मनी और ब्रिटेन के हमलावरों को भी पराजित करके खदेड़ दिया, उल्टे बेल्जियम पर कब्जा भी कर लिया। यह यूरोप की सभी ताकतों को जवाबी कार्रवाई की साफ चेतावनी थी।

क्रमशः

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