बुधवार, 10 मई 2017

कार्ल मार्क्स : जिसके पास अपनी एक किताब है (8)


-अरुण माहेश्वरी

मां की चिंता

कार्ल के नाम हेनरिख मार्क्स की चिट्ठियों में पाद-टिप्पणियों की तरह के हेनरिट्टा के पत्रों में से ही इस एक और पत्र को देखियें। यह उन्होंने हेनरिख के 18 नवंबर 1835 के खत के अंत में 29 नवंबर 1835 के दिन लिखा था। इसमें वे लिखती है -

‘‘मेरे दुलारे प्रिय कार्ल,
तुम्हे लिखने के लिये कलम उठाते हुए मुझे बहुत खुशी होती है ; तुम्हारे प्रिय पिता का पत्र काफी दिनों से तैयार था, लेकिन मैं उसे रोके रही। मुझे फिर से लिखो ताकि जान सकूं कि तुम ठीक हो, तुम जानते हो तुमको लेकर मैं कितनी चिन्तित रहती हूं। हम सब यहां बिल्कुल ठीक हैं, ऊपर वाले की दया से हर कोई व्यस्त और काम में लगा हुआ है, और यहां तक कि एदुआर्द भी मेहनत कर रहा है ताकि हम उसे सक्षम आदमी बना सकें। अब तुम इसे मेरी स्त्री-सुलभ कमजोरी मत समझना यदि मैं तुमसे अपने छोटे से घर की व्यवस्था के बारे में पूछूं। क्या करीने से रह रहे हो, जो बड़े और छोटे दोनों प्रकार के घरों के लिए जरूरी होता है। प्रिय कार्ल, मैं कहूंगी कि साफ-सफाई को कभी भी महत्वहीन मत समझना, क्योंकि इन पर ही स्वास्थ्य और खुशियां निर्भर करते हैं। हमेशा इस बात पर जोर देना कि तुम्हारा कमरा अच्छी तरह से रगड़ कर साफ किया जाए और इसके लिये एक निश्चिम समय बांध देना। और, तुम मेेरे प्यारे कार्ल हफ्ते में कम से कम एक बार साबुन और झावे से रगड़ कर नहाना। तुमको तुम्हारी काॅफी कैसे मिलती है ? खुद बनाते हो या फिर कैसे ? कृपा करके मुझे अपने घर के बारे में सब कुछ बताना। उम्मीद है तुम्हारी मां की बातों से तुम्हारी गहन मननशीलता अपमानित नहीं महसूस करेगी। उसे बताना कि नीचे से ही ऊंचाई और बेहतर को हासिल किया जाता है।’’(MECW, Vol. 1, page – 648-649)


हेनरिट्टा का यह पत्र उनके व्यक्तित्व की गहराई और उनके हमेशा जमीन पर टिके रहने के सोच का परिचय देता है। कार्ल मार्क्स ने अपने चिंतन की ऊंची से ऊंची उड़ानों में भी कभी जमीन से अपने संपर्कों को नहीं टूटने दिया, क्या इसमें उनकी मां के संस्कारों की कोई भूमिका नहीं थी ! इस पत्र के लगभग तीस साल बाद 30 अप्रैल 1868 के एक महत्वपूर्ण लंबे पत्र के अंत में मार्क्स एंगेल्स को एक जगह लिखते हैं - कुछ दिनों में मैं पचास का हो जाऊंगा। जैसा कि उस प्रुशियाइ लेफ्टिनेंट ने तुमसे कहा था: नौकरी के 20 साल बाद अब भी लेफ्टिनेंट ही हूं’, मैं कह सकता हूं: मेरें कंधों पर आधी सदी , और फिर भी दरिद्र। मेरी मां कितनी सही थी, ‘इतना सब करने के बजाय कार्ल तुमने कुछ पूंजी जोड़ी होती !’’ (MECW, Vol. 43, page – 25)
(In a few days I shall be 50. As that Prussian lieutenant said to you: '20 years of service and still lieutenant', I can say: half a century on my shoulders, and still a pauper. How right my mother was: 'If only Karell had made capital instead of etc")

पिता और मां के पाद-टिप्पणी-नुमा पत्रों को देख कर एक बात बिल्कुल साफ दिखाई देती है कि कार्ल मार्क्स को उनके पूरे परिवार को अतिशय स्नेह और दुलार प्राप्त था। मां उनके स्वास्थ्य के बारे में अतिरिक्त चिंतित रहती थी, वह भी अहेतुक नहीं था।

उनकी इस चिंता को उनके परिवार के स्वास्थ्य संबंधी पूरे इतिहास से जोड़ कर देखा जाना चाहिए। मार्क्स के नौ भाई बहनों में से पांच की मृत्यु पचीस साल से कम उम्र में हो गई थी। फुसफुस का यक्ष्मा रोग इस परिवार का सबसे बड़ा दुश्मन था। खास तौर पर पुरुषों के लिये। मार्क्स को खुद भी अक्सर फेफड़े में संक्रमण हो जाया करता था, फिर भी वे इस बीमारी से बचे रहे और उनके अलावा उनकी तीन बहनों, सोफी, लुईस, एमीली ने अपनी पूरी उम्र लीं। उनके बड़े भाई मोहिक्स चार साल की उम्र में ही गुजर गये थे, हैर्मन तेईस साल में, हेनरिट्टा पचीस में, कैरोलीन तेईस साल और एडुआर्द, जिसकी ऊपर के पत्र में चर्चा भी हुई है, ग्यारह साल में ही गुजर गये थे। भरी जवानी में जिस मां की इतनी संतानें गुजर गई हो, उसकी अपने बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में चिंता का सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है !


खुद मार्क्स ने अपने स्कूल के दिनों में लिखे गये बहुचर्चित लेख, ‘पेशे के चयन के बारे में एक नौजवान के विचार’ में लिखा था कि ‘‘ अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य को इस चयन को बहुत बड़ा विशषाधिकार मिला हुआ है, लेकिन यही वह कारण भी है जो उसके पूरे जीवन को तबाह कर सकता है, उसकी योजनाओं पर पाने फेर सकता है और उसे दुख दे सकता है। ...अक्सर हमारी शारीरिक संरचना ही एक खतरनाक बाधा होती है, किसी का उस पर जोर नहीं चलता है। ...यद्यपि हम अपनी शारीरिक संरचना की वजह से ही, जो हमारे पेशे के अनुरूप नहीं होती, काफी दिनों तक काम नहीं कर सकते हैं, और सुखपूर्वक तो बहुत कम। शारीरिक तौर पर कमजोर होने पर भी काम के सामने हम हमेशा अपनी तंदुरुस्ती की अवहेलना करते हैं। ’’ (MECW, Vol. 1, page – 3-7)

उनके इस कथन में भी कहीं न कहीं, उनकी खुद की स्वास्थ्य-संबंधी चिंताएं भी बोल रही थी। आम तौर पर लोगों ने इस लेख के अन्य दार्शनिक पहलुओं की तो काफी चर्चा की है, लेकिन यह जो स्वास्थ्य संबंधी पहलू है, जो उनके दिमाग में भी काम कर रहा था, इस पर ध्यान नहीं दिया गया है।
क्रमशः

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