बुधवार, 14 दिसंबर 2016

ये खुशफहमियों के फेरीवाले !


-अरुण माहेश्वरी

कुछ आंकड़ेबाज अर्थशास्त्री नोटबंदी से ग़रीब लोगों की ज़िंदगी में मची हुई तबाही को यह कह कर हंस के उड़ा रहे हैं कि इससे दूरगामी परिणाम अच्छे मिलेंगे । वे बताते हैं इससे बैंकों के पास काफी रुपया इकट्ठा हो जायेगा । बैंक व्याज की दरों को कम कर पायेगी। होम लोन लेने वालों को सहूलियत मिलेगी । रीयल स्टेट में भारी तेज़ी आयेगी । और सामयिक तौर पर अर्थ-व्यवस्था को धक्का लगने पर भी वह तेज़ी के साथ फिर से पटरी पर लौट कर भागने लगेगी ।

भारी उत्साह से बयान की जा रही अपनी इस पूरी कहानी में बड़ी चालाकी से वे इस प्रमुख बात को छिपा लेते हैं कि अर्थ-व्यवस्था में किये जा रहे इन तमाम प्रयोगों का सारा बोझ देश के ग़रीब मज़दूरों, किसानों और जिन्हें अर्थ-व्यवस्था के अनौपचारिक हिस्से से जुड़े लोग कहा जाता है, उनके सिर पर लाद दिया जा रहा है । पहले से ही उनकी परेशानियों से भरी ज़िंदगी को पूरी तरह से तबाह करके उन्हें भुखमरी की दिशा में ठेल दिया जा रहा है ।

दूसरी इस बड़ी बात को भी छिपाया जा रहा है कि उनके बताये लाभों में देश के किसान-मज़दूरों का कोई स्थान नहीं है । आज सारी दुनिया में अधिक से अधिक ऑटोमेशन पर टिके विकास को रोजगारविहीन विकास के रूप में चिन्हित किया जा रहा है । क्या इन महोदयों के 'दूरगामी' लाभ का तात्पर्य यही है कि इससे एक झटके में बहुत बड़ी संख्या में रोज़गारों को ख़त्म करके ऑटोमेशन के रास्ते को सुगम बनाया गया है ?

तीसरी जिस प्रमुख बात पर चर्चा करने से वे क़तरा रहे हैं, वह है किसानों की बात । नोटबंदी ने कृषि अर्थ/व्यवस्था को सबसे बड़ा नुक़सान पहुँचाया है । क्या वे इस बात की गारंटी करेंगे कि भारत की बैंकिंग प्रणाली जो अब तक कृषि क्षेत्र से धन की निकासी का औपनिवेशिक ढंग का काम करती रही है, वह अब कृषि क्षेत्र में निवेश का काम करने लगेगी ? वे सहकारी बैंकों के बारे में भी चुप्पी साधे हुए हैं जो सीधे तौर पर किसानों के हितों को साधते रहे हैं । इस नोटबंदी के साथ ही इन कृषि क्षेत्र के सहकारी बैंकों को क्यों पंगु बना दिया गया ?

आज राज्य सभा टीवी पर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य डा. नरेंद्र जाधव की नोटबंदी के दूरगामी सुफल के बारे में झूठी खुशफहमियों को सुन कर हमारे मन में तत्काल ये सवाल उठे । वे राज्य सभा टीवी पर अपने साक्षात्कार के वक़्त बहुत खिलखिला रहे थे । वे आंकड़ों से जुड़ी संवेदनहीनता को मूर्त कर रहे थे ।

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