बुधवार, 28 दिसंबर 2016

काला धन / सफेद धन


(2)

-अरुण माहेश्वरी


अगर सफेद धन से तात्पर्य अर्जित धन से राज्य के राजस्व की अदायगी के बाद बचा हुआ धन है तो प्रमुख सवाल पैदा होता है कि राज्य को राजस्व क्यों और कितना ?

समाज के संगठन में राज्य की भूमिका को अनिवार्य माना जाता है। यह भी सच है कि आज के समाज की संरचना प्राचीन काल की तरह की सरल संरचना नहीं है। यह एक जटिल संरचना है। साधनों के बढ़ने के साथ-साथ इस आधुनिक काल में राज्य नामक संस्था ने इस प्रकार अपने पैर पसार लिये है कि आज हालत यह है कि कभी जिस राज्य को व्यक्ति के जीवन में जरूरी और महत्वपूर्ण माना जाता था, वहीं आज नये युग के विचारक मनुष्य का भविष्य उस राज्य के पूरी तरह से अवलोप में देखते हैं।

मा​र्क्स ने तो वर्गों में विभाजित समाज में राज्य को पूरी तरह से बालूई आधार पर खड़ा देखा था। आज यह सच है कि राज्य में सुधार ही मनुष्य के सामाजिक संघर्षों का सबसे प्रमुख एजेंडा है। लेकिन राज्य का भविष्य नागरिकों के संदेह के घेरे में है।

कहने का तात्पर्य सिर्फ यह है कि राज्य का विषय कोई ऐसा पवित्र विषय नहीं है जिसपर सवाल नहीं उठाये जा सकते या नहीं उठाये जाने चाहिए। बल्कि आज तो नागरिक की जागरुकता राज्य के बरक्स उसके नजरिये से तय होती दिखाई देती है।

और, व्यक्ति की संपत्ति का अधिकार एक ऐसा मसला है, जो कितना भी विवादास्पद क्यों न माना जाए, उसका एक सीधा संबंध आदमी के जीवन में सुख, शांति और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। कंगालियत सिर्फ भौतिक जीवन को ही नहीं, आदमी के मनोजगत को भी संकुचित करती है। राज्य का जन्म लोगों की आपसी ईष्‍​र्या और द्वेष को काबू में रखने के लिये हुआ, लेकिन वर्गों में विभाजित समाज में उसकी भूमिका स्वत: संपत्तिवानों के हितों की रक्षा बन गया। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के बाद ही राज्य के कत्‍​र्तव्यों में समानता और स्वतंत्रता की तरह की बातों का समावेश हुआ है।

इसीलिये, आज जब राज्य अपने नागरिक को समानता और स्वतंत्रता का अधिकार तो दूर की बात, उसके जीवन के न्यूनतम सुख और शांति के आधार की भी रक्षा न करें तो वह राज्य अपने बने रहने के नैतिक औचित्य को गंवा देता है। नमक कानून तोड़ने के लिये गांधी जी का डांडी मार्च अंग्रेजों के औपनिवेशिक राज्य की राजस्व की अनैतिक मांग के खिलाफ मार्च था।

इस पूरे संदर्भ में, मोदी सरकार ने काला धन के नाम पर भारत के आम लोगों के घरों की मामूली संपत्तियों पर डाका डाला है। बैंकों के जरिये उसे काला धन वालों को ही सौंपने का ाड़यंत्र रचा है।  इसने काला धन के खिलाफ लड़ाई को न सिर्फ नैतिक रूप से कमजोर किया है, बल्कि अंग्रेजों की तरह भारत के लोगों के धन की निकासी करके स्विस बैंकों में अपने काले धन को जमा कराने वालों को सौंपने की तरह का गर्हित अपराध किया है।

यह लोगों पर डिजिटलाइजेशन का एक जजिया कर और लगा रही है। वह कर भी कुछ बड़ी कंपनियों के पास जायेगा। इस प्रकार,  भारत के आम लोगों में आधुनिकता की हर मुहिम के प्रति नफरत के बीज बोने का काम किया है। अर्थात, आने वाली पीढि़यों के भविष्य को भी नुकसान पहुंचाया है।

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