सोमवार, 26 दिसंबर 2016

इस विपत्ति भरे साल के अंतिम दिन की ओर बढ़ते वक्त :

-अरुण माहेश्वरी



लोग सोच रहे हैं, 30 दिसंबर के बाद पूछेंगे - क्या खत्म होगया काला धन ?

अगर नहीं, तो कुछ लोग अभी से चौराहे की तलाश भी करने लगे हैं !

वे नहीं जानते कि आप जिनको चौराहे पर लाना चाहते हैं, वे तो कैशलेस-लेसकैश-डिजिटलाइजेशन का जाप करते-करते तूफानी गति से बेनामी संपत्ति की दिशा में, बहुत दूर बेपत्ता (गुम) हो गए हैं। अब काला धन की धूल छान कर क्या मिलेगा ?

वे तो कंगारू की तरह उछल-उछल कर, शतरंज के घोड़े की ढाई घर वाली चाल से चलते हैं। सचमुच यह उन ज्ञानियों का एक अनोखा खेल है, जो यह मान कर चलते हैं कि किसी भी रहस्य को एकाएक प्रकट नहीं करना चाहिए। रहस्यात्मक विधियों का निरूपण एक ही स्थान पर न कर अलग-अलग संदर्भों में किया जाए ताकि सामान्य जनों के पल्ले कुछ न पड़े और जानकार लोग उन कडि़यों को जोड़ कर इनका रहस्य-भेदन कर सके।

फिर भी, कम से कम इतना तो साफ हो ही चला है कि एक सही चीज गलत जगह पर जितना नुकसान करती है, गलत चीज सही जगह पर उससे बहुत ज्यादा नुकसान करती है। काला धन को खत्म करने के सही काम में नोटबंदी के गलत कदम ने देश को बर्बादी के कगार पर खड़ा कर दिया है।

बहरहाल, गीता में कहा गया है - असत् वस्तु की सत्ता नहीं होती और नित्य वस्तुओं का विनाश नहीं। अभी यही कहा जा सकता है कि युद्ध शुरू हो चुका है। कोई कितना ही माया जाल क्यों न रचे, परिवर्तन का नया संयोग बनने लगा है।



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